________________ पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक ] [199 [1054-1 प्र.] भगवन् ! विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवों की नैरयिकत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [1054-1 उ.] गौतम ! (वे) अनन्त हैं। [प्र.] (उनकी) बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] (गौतम !) नहीं हैं / [प्र.] (उनकी) पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] (गौतम ! ) नहीं हैं। [2] एवं जाव जोइसियते। णवरमेसि मणूसत्ते प्रतोया अणंता; केवतिया बद्धल्लगा? णस्थि; पुरेक्खडा असंखेज्जा / [1054-2] इसी प्रकार यावत् ज्योतिष्कदेवत्वरूप में भी (अतीत बद्ध पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों के विषय में कहना चाहिए। विशेष यह है कि इनकी मनुष्यत्वरूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं / [प्र.] (इनकी) बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] (गौतम !) नहीं हैं। [प्र. (इनकी) पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] (गौतम ! वे) असंख्यात हैं। [3] एवं जाव गेवेज्जगदेवत्ते / सट्टाणे प्रतीता असंखेज्जा / केवतिया बद्धल्लगा? प्रसंखेज्जा। केवतिया पुरेक्खडा ? असंखेज्जा / [1054-3] (विजयादि चारों की) सौधर्मादि देवत्व से लेकर यावत् ग्रेवेयकदेवत्व के रूप में अतीतादि द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता इसी प्रकार है। इनकी स्वस्थान में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ असंख्यात हैं। [प्र.] बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] असंख्यात हैं। [प्र.] (उनकी) पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] (गौतम ! पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ) असंख्यात हैं / [4] सम्बटुसिद्धगदेवत्ते अतीता पत्थि, बद्धलगा णत्थि, पुरेक्खडा असंखेज्जा। [1054-4] (इन चारों देवों) की सर्वार्थसिद्धदेवत्व रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं, बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ भी नहीं हैं, किन्तु पुरस्कृत असंख्यात हैं। 1055. [1] सम्वसिद्धगदेवाणं भंते ! रइयत्ते केवतिया दवें दिया प्रतीता? गोयमा! अणंता। केवतिया बद्धलगा? णत्थि / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org