________________ 192] [ प्रज्ञापनासूत्र [1045-1] सौधर्मकल्प देव की (तथारूप में अतीतादि द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता) भी (सू. 1041 में अंकित) नैरयिक की (वक्तव्यता के समान कहना चाहिए।) [प्र.] विशेष यह है कि सौधर्मदेव की विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजितदेवत्व के रूप में कितनी अतीत द्रव्येन्द्रियाँ हैं ? [उ.] गौतम ! किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती / जिसकी होती हैं, उसकी आठ होती हैं। [प्र.] (उसकी) बद्ध द्रव्ये न्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! नहीं हैं। [प्र.] (उसकी) पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! किसी को होती हैं, किसी को नहीं होती। जिसकी होती हैं, पाठ या सोलह होती हैं / (सौधर्मदेव को) सर्वार्थसिद्धदेवत्वरूप में (अतीत बद्ध, पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों को वक्तव्यता (सू. 1041 के अनुसार) नैरयिक (की वक्तव्यता) के समान (समझनी चाहिए।) [2] एवं जाव गेवेज्जगदेवस्स सव्वटुसिद्धगदेवत्ते ताव णेयव्वं / [1045-2] (ईशानदेव से लेकर) ग्रेवेयकदेव तक की यावत् सर्वार्थसिद्धदेवत्वरूप में अतीतबद्ध पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता भी इसी प्रकार कहनी चाहिए। 1046. [1] एगमेगस्स णं भंते ! विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवस्स णेरइयत्ते केवतिया दग्विदिया अतीता? गोयमा! अणंता। केवतिया बद्धल्लगा? गोयमा ! पत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! पत्थि। [1046-1 प्र.] भगवन् ! एक-एक विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देव की नैरयिक के रूप में कितनी अतीत द्रव्येन्द्रियाँ हैं ? {1046-1 उ.] गौतम ! अनन्त हैं। [प्र.] (उसकी) बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! नहीं हैं। [प्र.] (उसकी) पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! नहीं हैं। [2] एवं जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणियत्ते / [1046-2] [इन चारों की प्रत्येक की, असुरकुमारत्व से लेकर यावत् पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकत्वरूप में (अतीत-बद्ध पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों को वक्तव्यता भी) इसी प्रकार (समझनी चाहिए।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org