________________ पन्द्रहवां इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक ] [179 [1020-2] इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक (के अवग्रह के विषय में कहना चाहिए)। 1021. [1] पुढयिकाइयाणं भंते ! कतिविहे उग्गहे पण्णते? गोयमा ! दुविहे उग्गहे पण्णत्ते / तं जहा-प्रत्थोग्गहे य वंजणोग्गहे य / [1021-1 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के कितने अवग्रह कहे गए हैं ? [1021-1 उ.] गौतम ! (उनके) दो प्रकार के अवग्रह कहे गए हैं / वे इस प्रकार-अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह / [2] पुढविकाइयाणं भंते ! वंजणोग्गहे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा! एगे फासिदियवंजणोग्गहे पण्णत्ते। [1021-2 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के व्यंजनावग्रह कितने प्रकार के कहे गए हैं ? {1021-2 उ.] गौतम ! (उनके केवल) एक स्पर्शेन्द्रिय व्यंजनावग्रह कहा गया है / [3] पुढविकाइयाणं भंते ! कतिविहे अत्थोग्गहे पण्णते ? गोयमा ! एगे फासिदियप्रत्थोग्गहे पण्णत्ते / [1021-3 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के कितने अर्थावग्रह कहे गए हैं ? [1021-3 उ.] गौतम ! (उनके केवल) एक स्पर्शेन्द्रिय-अर्थावग्रह कहा गया है / [4] एवं जाव वणप्फइकाइयाणं / [1021-4] (अप्कायिकों से लेकर) यावत् वनस्पतिकायिक (के व्यंजनावग्रह एवं अर्थावग्रह के विषय में) इसी प्रकार कहना चाहिए। 1022. [1] एवं बेइंदियाण वि / णवरं बेइंदियाणं वंजणोग्गहे दुविहे पण्णत्ते, प्रत्थोग्गहे दुविहे पण्णत्ते। [1022-1] इसी प्रकार द्वीन्द्रियों के अवग्रह के विषय में समझना चाहिए / विशेष यह है कि द्वीन्द्रियों के व्यंजनावग्रह दो प्रकार के कहे गए हैं तथा (उनके) अर्थावग्रह भी दो प्रकार के कहे गए हैं। [2] एवं तेइंदिय-चरिदियाण वि / णवरं इंदियपरिवुड्डी कायव्वा / चरिदियाणं वंजणोग्गहे तिबिहे पणत्ते, प्रत्थोग्गहे चउब्धिहे पण्णत्ते / [1022-2] इसी प्रकार श्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के (व्यंजनावग्रह और अर्थावग्रह के) विषय में भी समझना चाहिए / विशेष यह है कि (उत्तरोत्तर एक-एक) इन्द्रिय को परिवृद्धि होने से एक-एक व्यंजनावग्रह एवं अर्थावग्रह की भी वृद्धि कहनी चाहिए। चतुरिन्द्रिय जोवों के व्यञ्जनावग्रह तीन प्रकार के कहे हैं और अर्थावग्रह चार प्रकार के कहे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org