________________ 178] [प्रकापनासून [1016-1 उ.] गौतम ! ईहा पांच प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार-श्रोत्रेन्द्रियईहा (से लेकर) यावत् स्पर्शेन्द्रिय-ईहा / [2] एवं जाव वेमाणियाणं / णवरं जस्स जति इंदिया।६॥ [1016-2] इसी प्रकार (नैरयिकों से लेकर) यावत् वैमानिकों तक (ईहा के विषय में कहना चाहिए।) विशेष यह है कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, (उसके उतनी ही ईहा कहनी चाहिए / ) / / 9 / / 1017. कतिविहे गं भंते ! उग्गहे पण्णते ? गोयमा ! दुविहे उग्गहे पण्णत्ते / तं जहा-प्रत्थोग्गहे य वंजगोग्गहे य / [1017 प्र.] भगवन् ! अवग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ? [1017 उ.] गौतम ! अवग्रह दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार-अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह। 1018. वंजणोग्गहे णं भंते ! कतिविहे पण्णते ? गोयमा ! चउविहे पण्णत्ते। तं जहा-सोइंदियवंजणोग्गहे पाणिदियवंजणोग्गहे जिभिदियवंजणोग्गहे फासिदियवंजणोग्गहे। [1018 प्र. भगवन् ! व्यंजनावग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ? [1018 उ.] गौतम ! (व्यञ्जनावग्रह) चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकारश्रोत्रेन्द्रियावग्रह, घ्राणेन्द्रियावग्रह, जिह्वेन्द्रियावग्रह और स्पर्शेन्द्रियावग्रह / 1016. अत्थोग्गहे णं भंते ! कतिविहे पण्णते ? गोयमा ! छबिहे प्रत्थोग्गहे पण्णत्ते / तं जहा-सोइंदियनत्थोग्गहे चक्खिदियनत्थोग्गहे घाणिदियप्रत्थोग्गहे जिभिदियप्रत्थोग्गहे फासिदिय प्रत्थोग्गहे णोइंदियनत्थोग्गहे / [1016 प्र.] भगवन् ! अर्थावग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ? [1019 उ.] गौतम ! अर्थावग्रह छह प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार-श्रोत्रेन्द्रियअर्थावग्रह, चक्षुरिन्द्रिय-अर्थावग्रह, घ्राणेन्द्रिय-प्रर्थावग्रह, जिह्वन्द्रिय-अर्थावग्रह, स्पर्शेन्द्रिय-अर्थावग्रह और नोइन्द्रिय (मन)-अर्थावग्रह / 1020. [1] रइयाणं भंते ! कविहे उग्गहे पण्णत्ते ! गोयमा ! दुविहे उग्गहे पणत्ते / तं जहा–प्रत्थोग्गहे य वंजणोग्गहे य / [1020-1 प्र.] भगवन् ! नै रयिकों के कितने अवग्रह कहे गए हैं ? [1020-1 उ.] गौतम ! (उनके) दो प्रकार के अवग्रह कहे हैं / यथा—अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह / [2] एवं असुरकुमाराणं जाव थणियकुमाराणं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org