________________ पन्द्रहवां इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक ] [183 चौवीस दण्डकों की प्रतीत-बद्ध-पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों की प्ररूपरणा 1030. एगमेगस्स णं भंते ! रइयस्स केवतिया विदिया प्रतीया? गोयमा ! प्रणंता। केवतिया बदल्लया? गोयमा ! :अट्ठ। केवतिया पुरेवखडा? गोयमा ! प्रढ वा सोलस वा सत्तरस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा। [1030 प्र.] भगवन् ! एक-एक नैरयिक की अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [1030 उ.] गोतम ! अनन्त हैं। [प्र.] (भगवन् ! एक-एक नैरयिक की) कितनी (द्रव्येन्द्रियाँ) बद्ध हैं ? [उ.] गौतम ! आठ हैं। [प्र.] भगवन् ! एक-एक नैरयिक की पुरस्कृत (आगे होने वाली) द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! (आगामी द्रव्येन्द्रियाँ) पाठ हैं, सोलह है, संख्यात हैं, असंख्यात हैं अथवा अनन्त हैं। 1031. [1] एगमेगस्स णं भंते ! असुरकुमारस्स केवतिया दधिदिया प्रतीता? गोयमा ! अणंता। केवतिया बद्धल्लगा? गोयमा! अट्ठ। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा अट्ट वा णव वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा / [1031-1 प्र.] भगवन् ! एक-एक असुरकुमार के अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [1031-1 उ.] गौतम ! अनन्त हैं। [प्र.] (भगवन् ! एक-एक असुरकुमार के) कितनी (द्रव्येन्द्रियाँ) बद्ध हैं ? [उ.] गौतम ! आठ हैं। [प्र.] (भगवन् ! एक-एक असुरकुमार के) पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! आठ हैं, संख्यात हैं, असंख्यात हैं, या अनन्त हैं। [2] एवं जाव थणियकुमाराणं ताव भाणियब्वं / [1031-2] नागकुमार से ले कर स्तनितकुमार तक (की अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों के विषय में भी) इसी प्रकार कहना चाहिए। 1032. [1] एवं पुढविक्काइय-प्राउक्काइय-वणप्फइकाइयस्स वि। णवरं केवतिया बदल्लगा? ति पुच्छाए उत्तरं एषके फासिदिए पण्णते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org