________________ पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक] [17 केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! कस्तइ अस्थि कासइ पत्यि, जस्मऽरिय प्रह वा सोलस वा च उवीसा वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा प्रणंता वा / एवं जाव थणियकुमारत्ते। [1041-2 प्र.] भगवन् ! एक-एक नैरयिक को असुरकुमार पर्याय में अतीत (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [1041-2 उ.] गौतम ! अनन्त हैं। [प्र.] बद्ध (द्रव्येन्द्रियां) कितनी हैं ? [उ. (वे) नहीं हैं। [प्र.] पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! (वे) किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती, जिसकी होती हैं, उसकी पाठ, सोलह, चौवीस, संख्यात, असंख्यात या अनन्त होती हैं। इसी प्रकार एक-एक नैरयिक को (नागकुमारपर्याय से लेकर) यावत् स्तनितकुमारपर्याय में (अतीत, बद्ध एवं पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों के विषय में कहना चाहिए / ) [3] एगमेगस्स णं भंते ! रहयस्स पुढविकाइयत्ते केवतिया दविदिया अतीया ? गोयमा ! अणंता। केवतिया बद्धल्लया ? गोयमा! णत्यि। केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽस्थि एकको वा दो वा तिणि वा संखेज्जा वा असंखेज्जा बा अणंता वा / एवं जाव वणप्फइकाइयत्ते / [1041-3 प्र.] भगवन् ! एक-एक नैरयिक को पृथ्वीकायपन में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [1041-3 उ.] गौतम ! (वे) अनन्त हैं। [प्र.] बद्ध द्रव्ये न्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! (वे) नहीं हैं / [प्र.] (भगवन् ! इनकी) पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती / जिसकी होतो हैं, उसकी एक, दो, तीन या संख्यात, असंख्यात या अनन्त होती हैं। इसी प्रकार एक-एक नारक को अप्कायपर्याय से लेकर यावत् वनस्पतिकायपन में (अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों के विषय में कहना चाहिए।) [4] एगमेगस्स गं भंते ! रइयस्स बेइंदियत्ते केवतिया दविदिया अतीया? गोयमा ! अणंता। केवतिया बद्धलगा? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org