________________ [ 185 पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक ] 1036. एगमेगस्स णं भंते ! विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवस्स केवतिया दविदिया प्रतीया? गोयमा ! अणंता। केवतिया बद्धल्लगा? गोयमा ! प्रट्ट। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! अटु वा सोलस वा चउवीसा वा संखेज्जा वा / {1036 प्र. भगवन् ! एक-एक विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देव की अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [1036 उ.] गौतम अनन्त हैं। [प्र.] भगवन् ! विजयादि चारों में से प्रत्येक की बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! पाठ हैं। [प्र.] भगवन् ! (इनकी प्रत्येक की) पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! (वे) आठ, सोलह, चौवीस या संख्यात होती हैं। 1037. सव्वट्ठसिद्धगदेवस्स प्रतोता अणंता, बद्ध ल्लगा अट्ट, पुरेक्खडा अट्ठ / 61037] सर्वार्थसिद्ध देव की (प्रत्येक को) अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त, बद्ध पाठ और पुरस्कृत भी पाठ होती हैं। 1038. [1] णेरइयाणं भंते ! केवतिया दविदिया प्रतीया ? गोयमा ! अणंता। केवतिया बद्धलगा? गोयमा ! असंखेज्जा। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! प्रणंता। [1038-1 प्र.] भगवन् ! (बहुत-से) नारकों की अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [1038-1 उ.] गौतम ! अनन्त हैं। [प्र.] (उनकी) बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! असंख्यात हैं। . [प्र.] (उनकी) पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! अनन्त हैं। [2] एवं जाब गेवेज्जगदेवाणं / णवरं मसाणं बद्धल्लगा सिय संखेज्जा सिय प्रसंखेज्जा। [1038-2] इसी प्रकार (असुरकुमारों से लेकर) यावत् (बहुत-से) ग्रेवेयक देवों (की अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों) के विषय में (समझ लेना चाहिए।) विशेष यह है कि मनुष्यों की बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात होती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org