________________ 186] [ प्रज्ञापनासूत्र 1036. विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवाणं पुच्छा ? गोयमा ! प्रतीता अणंता, बद्धल्लगा असंखेज्जा, पुरेक्खडा असंखेज्जा। [1039 प्र.] भगवन् ! (बहुत-से) विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवों की (अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी-कितनी हैं ? __[1039 उ.] गौतम ! (इनकी) अतीत (द्रव्येन्द्रियाँ) अनन्त हैं, बद्ध असंख्यात हैं (और) पुरस्कृत असंख्यात हैं। 1040. सम्वसिद्धगदेवाणं पुच्छा / गोयमा ! अईया अणंता, बद्धलगा संखेज्जा, पुरेक्खडा संखेज्जा। [1040 प्र.] भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध देवों की (अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ) कितनीकितनी हैं ? [1040 उ.] गौतम ! (इनकी) अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध संख्यात हैं (और) पुरस्कृत संख्यात हैं। 1041. [1] एगमेगस्स णं भंते ! जेरइयस्स णेरइप्रत्ते केवतिया दविदिया अतीया ? गोयमा! अणंता। केवतिया बद्धल्लया ? गोयमा ! अट्ट। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! कस्सइ प्रत्थि कस्सइ णस्थि, जस्सऽस्थि अट्ट वा सोलस वा चउवीसा वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा। [1041-1 प्र.] भगवन् ! एक-एक नैरयिक की नैरयिकपन (नारक अवस्था) में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [1041-1 उ.] गौतम ! अनन्त हैं / [प्र.] बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! (वे) पाठ हैं। [प्र.] पुरस्कृत (आगामी काल में होने वाली) द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! (पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ) किसी (नारक) की होती हैं, किसी की नहीं होती। जिसकी होती हैं, उसकी पाठ, सोलह, चौबीस, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं। [2] एगमेगस्स गं भंते ! जेरऽयस्स असुरकुमारत्ते केवतिया दविदिया प्रतीता ? गोयम ! अणंता। केवतिया बद्धल्लगा? गोयमा! णस्थि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org