________________ पन्द्रहवां इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक] [181 जिनका अपने विषय के साथ सम्बन्ध होता है; चक्षु और मन ये दोनों अप्राप्यकारी हैं, इसलिए इन का अपने विषय के साथ सम्बन्ध नहीं होता / इसी कारण व्यञ्जनावग्रह चार प्रकार का बताया गया है, जबकि अर्थावग्रह छह प्रकार का निर्दिष्ट है। ध्यञ्जनावग्रह और प्रर्थावग्रह में व्युत्क्रम क्यों ?-व्यञ्जनावग्रह पहले उत्पन्न होता है, और अर्थावग्रह बाद में: ऐसी स्थिति में बाद में होने वाले अर्थावग्रह का कथन पहले क्यों किया गया? इसका समाधान यह कि अर्थावग्रह अपेक्षाकृत स्पष्टस्वरूप वाला होता है तथा स्पष्टस्वरूप वाला होने से सभी उसे समझ सकते हैं। इसी हेतु से अर्थाव ग्रह का कथन पहले किया गया है। इसके अतिरिक्त अर्थावग्रह सभी इन्द्रियों और मन से होता है, इस कारण भी उसका उल्लेख पहले किया गया है। व्यञ्जनावग्रह ऐसा नहीं है, वह चक्षु और मन से नहीं होता तथा अतीव अस्पष्ट स्वरूप वाला होने के कारण सबके संवेदन में नहीं आता, इसलिए उसका कथन बाद में किया गया है।' ग्यारहवाँ द्रव्येन्द्रियद्वार 1024. कतिविहा गं भंते ! इंदिया पण्णत्ता? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता / तं जहा--दविदिया य भाविदिया य / [1024 प्र.] भगवन् ! इन्द्रियाँ कितने प्रकार की कही हैं ? [1024 उ.] गौतम ! इन्द्रियाँ दो प्रकार की कही गई हैं / वे इस प्रकार-द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय / 1025. कति णं भंते ! दविदिया पण्णता? गोयमा ! अट्ट विदिया पण्णत्ता। तं जहा-दो सोया 2 दो णेत्ता 4 दो घाणा 6 जीहा 7 फासे [1025 प्र.] भगवन् ! द्रव्येन्द्रियाँ कितनी कही गई हैं ? [1025 उ.] गौतम ! द्रव्येन्द्रिय आठ प्रकार की कही गई हैं। वे इस प्रकार-दो श्रोत्र, दो नेत्र, दो घ्राण (नाक), जिह्वा और स्पर्शन / 1026. [1] रइयाणं भंते ! कति दबिदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! अट्ट, एते चेव। [1026-1 प्र.] भगवन् ! नैरयिकों के कितनी द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं ? [1026-1 उ.] गौतम ! (उनके) ये ही आठ द्रव्येन्द्रियाँ हैं / 1. (क) प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांच 310-311 (ख) वंजिज्जइ जेणत्थो घडोव्व दीवेण वंजणं तं च / उवगरणिदिय सहाइपरिणयदव्वसंबन्धो // 1 // --विशेषा. भाष्य -प्रज्ञापना. म. वृत्ति पत्रांक 311 में उद्धृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org