________________ 182] [ प्रज्ञापनासूत्र [2] एवं असुरकुमाराणं जाव थणियकुमाराण वि / [1026-2] इसी प्रकार असुरकुमारों से (ले कर) यावत् स्तनितकुमारों तक (ये ही आठ द्रव्येन्द्रियाँ) समझनी चाहिए। 1027. [1] पुढविकाइयाणं भंते ! कति दग्विदिया पण्णता ? गोयमा ! एगे फासेंदिए पण्णत्ते / [1027-1 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के कितनी द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं ? [1027-1 उ.] गौतम ! (उनके केवल) एक स्पर्शनेन्द्रिय कही है। [2] एवं जाव वणप्फतिकाइयाणं / [1027-2] (अप्कायिकों से ले कर) वनस्पतिकायिकों तक के इसी प्रकार (एक स्पर्शनेन्द्रिय समझनी चाहिए / ) 1028. [1] बेइंदियाणं भंते ! कति दधिदिया पण्णता ? गोयमा ! दो दविदिया पण्णत्ता / तं जहा---फासिदिए य जिभिदिए य / [1028-1 प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों के कितनी द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं ? [1028-1 उ.] गौतम ! उनके दो द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं। वे इस प्रकार-स्पर्शनेन्द्रिय और जिह्वन्द्रिय / [2] तेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा ! चत्तारि विदिया पण्णत्ता / तं जहा-दो घाणा 2 जोहा 3 फासे 4 / [1028-2 प्र.] भगवन् ! श्रीन्द्रिय जीवों के कितनी द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं ? [1028-2 उ.] गौतम ! (उनके) चार द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं / वे इस प्रकार-दो ब्राण, जिह्वा और स्पर्शन। [3] चरिदियाणे पुच्छा। गोयमा ! छ विदिया पण्णता / तं जहा--दो णेत्ता 2 दो घाणा 4 जीहा 5 फासे 6 / [1028-3 प्र.] भगवन् ! चतुरिन्द्रिय जीवों के कितनी द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं ? [1028-3 उ.] गौतम ! उनके छह द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं / वे इस प्रकार---दो नेत्र, दो घ्राण, जिह्वा और स्पर्शन / 1026. सेसाणं जहा णेरइयाणं (सु. 1026 [1]) जाव वेमाणियाणं / [1026] शेष सबके (तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों, मनुष्यों, वाणव्यन्तरों, ज्योतिष्कों) यावत् वैमानिकों के (सू. 1026-1 में उल्लिखित) नैरयिकों की तरह (आठ द्रव्येन्द्रियाँ कहनी चाहिए।)। विवेचन-ग्यारहवाँ द्रव्येन्द्रियद्वार-प्रस्तुत छह सूत्रों (सू. 1024 से 1026 तक) में द्रव्येन्द्रियों के पाठ प्रकार और चौवीस दण्डकों में उनको प्ररूपणा की गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org