Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ बीओ उद्देसओ: द्वितीय उद्देशक द्वितीय उद्देशक के बारह द्वार१००६. इंदियउवचय 1 णिवत्तणा य 2 समया भवे असंखेज्जा 3 / लद्धी 4 उवयोगद्धा 5 अप्याबहुए विसेसहिया // 207 / / प्रोगाहणा 7 प्रवाए 8 ईहा 6 तह वंजणोग्गहे चेव 10 / विदिया 11 भाविदिय 12 तीया बद्धा पुरेक्खडिया // 20 // [1006 अर्थाधिकार गाथाओं का अर्थ-] 1. इन्द्रियोपचय, 2. (इन्द्रिय-) निर्वर्तना, 3. निर्वर्तना के असंख्यात समय, 4. लब्धि, 5. उपयोगकाल, 6. अल्पबहुत्व में विशेषाधिक उपयोग काल, / / 207 / / 7, अवग्रह, 8. अवाय (अपाय), 6. ईहा तथा 10. व्यंजनावग्रह और अर्थावग्रह, 11. मतीत बद्ध पुरस्कृत (आगे होने वाली) द्रव्येन्द्रिय, 12. भावेन्द्रिय / / 208 / / (इस प्रकार दूसरे उद्देशक में बारह द्वारों के माध्यम से इन्द्रियविषयक अर्थाधिकार प्रतिपादित है।) विवेचन-द्वितीय उद्देशक के बारह द्वार–प्रस्तुत सूत्र में दो गाथाओं द्वारा इन्द्रियोपचय मादि बारह द्वारों के माध्यम में इन्द्रियविषयक प्ररूपणा की गई। बारह द्वार-(१) इन्द्रियोपचयद्वार (इन्द्रिययोग्य पुद्गलों को ग्रहण करने की शक्ति-इन्द्रिय पर्याप्ति, (2) इन्द्रियनिवर्तनाद्वार (बाह्याभ्यन्तर निर्वृत्ति का निरूपण), (3) निर्वर्तनसमयद्वार (प्राकृति निष्पन्न होने का काल), (4) लब्धिद्वार (इन्द्रियावरण कर्म के क्षयोपशम का कथन), (5) उपयोगकालद्वार, (6) अल्पबहुत्वविशेषाधिकद्वार, (7) प्रवग्रहणाद्वार (अवग्रह का कथन), (8) प्रवायद्वार, (6) ईहाद्वार, (10) व्यञ्जनावग्रहद्वार, (11) द्रव्येन्द्रियद्वार और (12) भावेन्द्रिय अतीत बद्ध पुरस्कृतद्वार (भावेन्द्रिय की अतीत, बद्ध और पुरस्कृत इन्द्रियों का कथन), इन बारह द्वारों के माध्यम से इन्द्रियविषयक प्ररूपणा की जाएगी।' प्रथम इन्द्रियोपचय द्वार 1007. कतिविहे गं भंते ! इंदिनोवचए पण्णते ? गोयमा! पंचविहे इंदिनोवचए पण्णते। तं जहा-सोइंदिनोवचए चक्खिदिनोवचए धाणिदिनोवचए जिभिदिनोवचए फासिदिनोवचए / [1007 प्र.] भगवन् ! इन्द्रियोपचय कितने प्रकार का कहा गया है ? [1007 उ.] गौतम ! इन्द्रियोपचय पांच प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार (1) श्रोत्रेन्द्रियोपचय, (2) चक्षुरिन्द्रियोपचय, (3) घ्राणेन्द्रियोपचय, (4) जिह्वन्द्रियोपचय और (5) स्पर्शनेन्द्रियोपचय / 1. प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक 309 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org