________________ पन्द्रहवां इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक] [175 [2] एवं ने रइयाणं जाव वेमाणियाणं / 3 // [1010-2] इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर यावत् वैमानिकों की इन्द्रियनिर्वर्तना के काल के विषय में कहना चाहिए। विवेचन-द्वितीय-तृतीय निर्वर्तनाद्वार एवं निर्वर्तनासमयद्वार-प्रस्तुत दो सूत्रों में से प्रथम सूत्र में पांच प्रकार की निर्वर्तना और द्वितीय सूत्र में प्रत्येक इन्द्रिय की निर्वर्तना के समयों की प्ररूपणा की गई है। निर्वर्तना का अर्थ-बाह्याभ्यन्तररूप निर्वृत्ति-आकार की रचना / ' चतुर्थ-पंचम-षष्ठ लब्धिद्वार, उपयोगद्वार एवं उपयोगाद्धाद्वार 1011. [1] कतिविहा णं भंते ! इंदियलद्धी पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा इंदियलद्धी पण्णत्ता / तं जहा---सोइंदियलद्धी जाव फासिदियलद्धी। [1011-1 प्र.] भगवन् ! इन्द्रियलब्धि कितने प्रकार की कही गई है ? [1011-1 उ.] गौतम ! इन्द्रियलब्धि पांच प्रकार की कही है। वह इस प्रकार-श्रोत्रेन्द्रियलब्धि यावत् स्पर्शेन्द्रियलब्धि / |एवं णेरडयाणं जाव वेमाणियाणं। नवरं जस्स जति इंदिया अस्थि तस्स तावतिया लद्धी भाणियन्वा / 4 / / [1011-2] इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक इन्द्रियलब्धि की प्ररूपणा करनी चाहिए / विशेष यह है कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, उसके उतनी ही इन्द्रियलब्धि कहनी चाहिए / 1012. [1] कतिविहा णं भंते ! इंदियउवयोगद्धा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा इंदियउयोगद्धा पण्णत्ता / तं जहा-सोइंदियउवयोगद्धा जाव फासिदियउवयोगद्धा। [1012-1 प्र.] भगवन् ! इन्द्रियों के उपयोग का काल (अद्धा) कितने प्रकार का कहा गया है ? [1012-1 उ.] गौतम ! इन्द्रियों का उपयोगकाल पांच प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार-श्रोत्रेन्द्रिय-उपयोगकाल यावत् स्पर्शेन्द्रिय-उपयोगकाल / [2] एवं गैरइयाणं जाव वेमाणियाणं / गवरं जस्स जति इंदिया अत्यि / 5 // [1012-2] इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक के इन्द्रिय-उपयोगकाल के विषय में समझना चाहिए / विशेष यह है कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, उसके उतने ही इन्द्रियोपयोगकाल कहने चाहिए। 1. प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक 309 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org