________________ 154] [प्रज्ञापनासून गोयमा ! विहे पण्णत्ते / तं जहा-भवधारणिज्जे य उत्तरवेउब्धिए य, तस्य जे से भवधारणिज्जे से गं हुंडसंठाणसंठिए पग्णत्ते, तत्य णं जे से उत्तरवेउन्धिए से वि तहेव / सेसं तं चेव / [983-2 प्र.भगवन् ! नारकों की श्रोत्रेन्द्रिय किस प्रकार की होती है ? [983-2 उ.] गौतम ! (उनकी श्रोत्रेन्द्रिय) कदम्बपुष्प के आकार की होती है / इसी प्रकार जैसे समुच्चय जीवों की पंचेन्द्रियों को वक्तव्यता कही है, वैसी ही नारकों की संस्थान, बाहल्य, पृथुत्व, कतिप्रदेश, अवगाढ़ और अल्पबहुत्व, इन छह द्वारों की भी वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष यह है कि नैरयिकों को स्पर्शनेन्द्रिय किस प्रकार की कही गई है ? (इस प्रश्न के उत्तर में इस प्रकार कहा गया है--) गौतम ! नारकों की स्पर्शनेन्द्रिय दो प्रकार की कही गई है, यथा-भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय / उनमें से जो भवधारणीय (स्पर्शनेन्द्रिय) है, वह हुण्डकसंस्थान की है और उनमें जो उत्तरवैक्रिय स्पर्शनेन्द्रिय है, वह भी हुण्डकसंस्थान की है। शेष (सब प्ररूपणा पूर्ववत् समझनी चाहिए।) 984. असुरकुमाराणं भंते ! कति इंदिया पण्णता ? गोयमा ! पंचेंदिया पण्णत्ता। एवं जहा प्रोहियाणं (973 तः 682) जाव अप्पाबहुयाणि दोण्णि वि / णवरं फासें दिए दुविहे पण्णत्ते / तं जहा–भवधारणिज्जे य उत्तरवेउविए य / तत्थ गं जे से भवधारणिज्जे से णं समचउरंससंठाणसंठिए पण्णत्ते, तत्थ णं जे से उत्तरवेउब्धिए से णं गाणा. संठाणसंठिए पण्णते / सेसं तं चेव / एवं जाव थणियकुमाराणं। [984 प्र.] भगवन् ! असुरकुमारों के कितनी इन्द्रियाँ कही गई हैं ? [984 उ.] गौतम ! (उनके) पांच इन्द्रियाँ कही हैं / इसी प्रकार जैसे (सू. 673 से 982 तक में) समुच्चय (ौधिक) जीवों (के इन्द्रियों के संस्थान से लेकर दोनों प्रकार के अल्पबहुत्व तक) की वक्तव्यता कही है, उसी प्रकार असुरकुमारों की इन्द्रियसम्बन्धी वक्तव्यता कहनी चाहिए / विशेष यह है कि (इनकी) स्पर्शनेन्द्रिय दो प्रकार की कही है, यथा--भवधारणीय (स्पर्शनेन्द्रिय) समचतुरस्त्रसंस्थान वाली है और उत्तरवैक्रिय (स्पर्शनेन्द्रिय) नाना संस्थान वाली होती है। इसी प्रकार की (इन्द्रियसम्बन्धी) वक्तव्यता नागकुमार से लेकर स्तनितकुमारों तक की (समझ लेनी चाहिए।) 985. [1] पुढविकाइयाणं भंते !. कति इंदिया पण्णता? गोयमा! एगे फासिदिए पण्णते। [985-1 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के कितनी इन्द्रियाँ कही गई हैं ? [985-1 उ.] गौतम ! (उनके) एक स्पर्शनेन्द्रिय (ही) कही है। [2] पुढविकाइयाणं भंते ! फासिदिए फिसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! मसूरचंदसंठिए पण्णत्ते। [985-2 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय किस आकार (संस्थान) की कही [985-2 उ.] गौतम ! (उनकी स्पर्शनेन्द्रिय) मसूर-चन्द्र के प्रकार की कही है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org