________________ 152] [प्रज्ञापनासूत्र [981-1 प्र.] भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय के मदु और लघु गुण कितने कहे गए हैं ? [981-1 उ.] गौतम ! (श्रोत्रेन्द्रिय के) मृदु-लघु-गुण अनन्त कहे गए हैं। [2] एवं जाव फासिदियस्स। [981-2] इसी प्रकार (चक्षुरिन्द्रिय से लेकर) यावत् स्पर्शनेन्द्रिय (तक के मृदु-लघु-गुण के विषय में कहना चाहिए।) 182. एतेसि णं भंते ! सोइंदिय-क्खिदिय-धाणिदिय-जिभिदिय-फासिदियाणं फक्खडगरुयगुणाणं मउयलहुयगुणाणं कक्खडगरुयगुण-मउयलहुयगुणाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा 4 ? गोयमा ! सब्वत्थोवा चक्खिदियस्स कक्खडगरुयगुणा, सोइंदियस्स कक्खडगरुयगुणा अणंतगुणा, घाणिदियस्स कक्खडगरुयगुणा अणतगुणा, जिभिदियस्स कक्खडगरुयगुणा अणंतगुणा, फासेंदियस्स कक्खडगरुयगुणा अणंतगुणा; मउयलहुयगुणाणं-सव्वत्थोवा फासिदियस्स मउयलहुयगुणा, जिभिदियस्स मउयलहुयगुणा अणंतगुणा, घाणिदियस्स मउयलहुयगुणा अणतगुणा, सोइंदियस्स मउयलहुयगुणा अणंतगुणा, चक्खिदियस्स मउयलहुयगुणा अणंतगणा; कक्खडगरुयगुणाणं मउयलहुयगुणाण य-- सम्वत्थोवा चक्खिदियस्स कक्खडगरुयगुणा, सोइंदियस्स कक्खडगरुयगुणा अणंतगुणा, घाणिदियस्स कक्खडगरुयगुणा, अणंतगुणा, जिभिदियस्स कक्खडगरुयगुणा प्रणंतगुणा, फासिदियस्स कक्खडगरुयगुणा अणंतगुणा, फासिदियस्स कक्खडगरुयगुणहितो तस्स चेव मउयलहुयगुणा अणंतगुणा, जिम्भिदियस्स मउयलहुयगुणा अणंतगुणा, घाणिदियस्स मउयलहुयगुणा अणंतगुणा, सोइंदियस्स मउयलहुयगुणा अणंतगुणा, चक्खिदियस्स मउयलहुयगुणा अणंतगुणा / [982 प्र.] भगवन् ! इन श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश-गुरु-गुणों और मृदु-लघु-गुणों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ? [982 उ.] गौतम ! सबसे कम चक्षुरिन्द्रिय के कर्कश-गुरु-गुण हैं, (उससे) श्रोत्रेन्द्रिय के कर्कश-गुरु-गुण अनन्तगुणे हैं, (उनसे) घ्राणेन्द्रिय के कर्कश-गुरु-गुण अनन्तगुणे हैं, (उनसे) जिह्वन्द्रिय के कर्कश-गुरुगुण अनन्तगुणे हैं (और उनसे) स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश-गुरु-गुण अनन्तगुणे हैं। मृदु-लघु गुणों में से सबसे थोड़े स्पर्शनेन्द्रिय के मृदु-लवु गुण हैं, (उनसे) जिह्वन्द्रिय के मृदु-लघु गुण अनन्तगुणे हैं, (उनसे) घ्राणेन्द्रिय के मृदु-लघु गुण अनन्तगुणे हैं, (उनसे) श्रोत्रेन्द्रिय के मदु-लघु गुण अनन्तगुणे हैं, (उनसे) चक्षुरिन्द्रिय के मृदु-लघु गुण अनन्तगुणे हैं / कर्कश-गुरु गुणों और मृदु-लघु गुणों में से सबसे कम चक्षुरिन्द्रिय के कर्कश-गुरु गुण हैं, (उनसे) श्रोत्रेन्द्रिय के कर्कश-गुरु गुण अनन्तगुणे हैं, (उनसे) घ्राणेन्द्रिय के कर्कश-गुरु गुण अनन्तगुणे हैं, (उनसे) जिह्वन्द्रिय के कर्कश-गुरु गुण अनन्तगुणे हैं, (उनसे) स्पर्शेन्द्रिय के कर्कश-गुरु गुण अनन्तगुणे हैं / स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कशगुरु-गुणों से उसी के मदु-लघु-गुण अनन्तगुणे हैं, (उनसे) जिह्वन्द्रिय के मृदु-लघु-गुण अनन्तगुणे हैं, (उनसे) घ्राणेन्द्रिय के मृदु-लघुगुण अनन्तगुणे हैं, (उनसे) श्रोत्रेन्द्रिय के मृदु-लघु-गुण अनन्तगुणे हैं, (और उनसे भी) चक्षुरिन्द्रिय के मदु-लघु-गुण अनन्तगुणे हैं / विवेचन-इन्द्रियों के अवगाहना-प्रदेश, कर्कश-गुरु तथा मृदु-लघुगुण आदि की अपेक्षा से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org