________________ पन्द्रहवां इन्द्रियपद : प्रथम उद्देशक ] [ 165 ___ [965-2] इसी प्रकार (असुरकुमारों से लेकर) यावत् पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों तक के विषय में कहना चाहिए। 666. मणूसा णं भंते ! ते णिज्जरापोग्गले कि जाणंति पासंति आहारेति ? उदाहु ण जाणंति ण पासंति ण प्राहारेंति ? __ गोयमा ! प्रत्येगइया जाणंति पासंति प्राहारेंति, प्रत्थेगइया ण जाणंति ण पासंति माहारेति / से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चति प्रत्थेगइया जाणंति पासंति प्राहारेंति ? अत्थेगइया ण जाणंति ण पासंति प्राहारेंति ? गोयमा ! मणूसा दुविहा पग्णत्ता। तं जहा–सण्णिभूया य असण्णिभूया य / तत्य णं जे ते प्रसणिभूया ते णं ण जाणंति ण पासंति आहारति / तत्थ णं जे ते सण्णिभूया ते दुविहा पण्णता, तं जहा-उवउत्ता य अणुवउत्ता य / तत्थ णं जे ते अणवउत्ता ते ण ण जाणंति ण पासंति प्राहारेंति, तस्थ गंजे ते उवउत्ता ते णं जाणेति पासेंति प्राहारेंति, से एएणद्वेणं गोयमा ! एवं बुच्चति-प्रत्थेगइया ण जाणंति ण पासंति प्राहारेति प्रथेगइया जाणंति पासंति आहारेंति / [996 प्र.] भगवन् ! क्या मनुष्य उन निर्जरा-पुद्गलों को जानते-देखते हैं और (उनका) आहरण करते हैं ? अथवा (उन्हें) नहीं जानते, नहीं देखते और नहीं आहरण करते ? [996 उ.] गौतम ! कोई-कोई मनुष्य (उनको) जानते-देखते हैं और (उनका) आहरण करते हैं और कोई-कोई मनुष्य नहीं जानते, नहीं देखते और (उनका) आहरण करते हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि कोई-कोई मनुष्य (उनको) जानतेदेखते हैं और (उनका) आहार करते हैं और कोई-कोई मनुष्य नहीं जानते, नहीं देखते और आहार करते हैं ? [उ.] गौतम ! मनुष्य दो प्रकार के कहे गए हैं। यथा-संज्ञीभूत (विशिष्ट अवधिज्ञानी) और असंज्ञीभूत (विशिष्ट अवधिज्ञान से रहित)। उनमें से जो असंज्ञीभूत हैं, वे (उन चरम निर्जरापुद्गलों को) नहीं जानते, नहीं देखते, आहार करते हैं। उनमें से जो सज्ञीभूत हैं, वे दो प्रकार के कहे गये हैं-उपयोग से युक्त और उपयोग से रहित (अनुपयुक्त)। उनमें से जो उपयोगरहित है, वे नहीं जानते, नहीं देखते, आहार करते हैं। उनमें से जो उपयोग से युक्त है, वे जानते हैं, देखते हैं और आहार करते हैं। इस हेतु से हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि कोई-कोई मनुष्य नहीं जानते, नहीं देखते (किन्तु) आहार करते हैं और कोई-कोई मनुष्य जानते हैं, देखते हैं, आहार करते हैं। ___997. वाणमंतर-जोइसिया जहा जेरइया (सु. 665 [1]) / FRE7] वाणव्यन्तर और ज्योतिष्क देवों से सम्बन्धित वक्तव्यता (सू. 995-1 में उल्लिखित) नैरयिकों को वक्तव्यता के समान (जानना चाहिए।) 168. वेमाणिया णं भंते ! ते णिज्जरापोग्गले किं जाणंति पासंति प्राहारेंति ? __ गोयमा ! जहा मणूसा (सु. 666) / णवरं वेमाणिया दुविहा' पण्णत्ता। तं जहा-माइमिच्छद्दिटिउववण्णगा य अमाइसम्मद्दिहिउवषण्णगा य / तत्थ णं जे ते माइमिच्छद्दिहिउववनगा ते णं 1. ग्रन्थानम् 4500 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org