________________ ग्यारहवाँ भाषापद] चतुर्विध भाषाजात एवं समस्त जीवों में उसकी प्ररूपणा 870. कति णं भंते ! भासज्जाता पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि मासज्जाता पण्णत्ता। तं जहा-सच्चमेगं भासज्जातं 1 बितिय मोसं 2 ततियं सच्चामोसं 3 चउत्थं प्रसच्चामोसं 4 / [870 प्र] भगवन् ! भाषाजात (भाषा के प्रकार-रूप) कितने कहे गए हैं ? [870 उ.] गौतम ! चार भाषाजात कहे गए हैं / वे इस प्रकार हैं-(१) एक सत्य भाषाजात, (2) दूसरा मृषा भाषाजात, (3) तीसरा सत्यामृषा भाषाजात और (4) चौथा असत्यामृषा भाषाजात। 871. जीवा णं भंते ! कि सच्चं भासं भासंति ? मोसं भासं भासंति ? सच्चामोसं भासं मासंति ? असच्चामोसं भासं भासंति ? गोयमा ! जीवा सच्चं पि भासं भासंति, मोसं पि भासं भासंति, सच्चामोसं पि भासं भासंति, असच्चामोस पि भासं भासंति / [871 प्र.] भगवन् ! जीव क्या सत्यभाषा बोलते हैं, मृषाभाषा बोलते हैं, सत्यामृषा भाषा बोलते हैं अथवा असत्यामृषा भाषा बोलते हैं ? / [871 उ.] गौतम ! जीव सत्यभाषा भी बोलते हैं, मृषाभाषा भी बोलते हैं सत्या-मृषा भाषा भी बोलते हैं और असत्यामृषा भाषा भी बोलते हैं / 872. रइया णं भंते ! कि सच्चं भासं मासंति जाव कि असच्चामोसं भासं भासंति ? गोयमा ! रइया णं सच्चं पि भासं भासंति जाव असच्चामोसं पि भासं भासंति / [872 प्र.] भगवन् ! क्या नैरयिक सत्यभाषा बोलते हैं, मृषाभाषा बोलते हैं, सत्यामृषा भाषा बोलते हैं, अथवा असत्यामृषा भाषा बोलते हैं ? [872 उ.] गौतम ! नैरयिक सत्यभाषा भी बोलते हैं, मृषाभाषा भी बोलते हैं, सत्यामृषा भाषा भी बोलते हैं और असत्यामृषा भाषा भी बोलते हैं। , 873. एवं असुरकुमारा जाव थणियकुमारा। [873] इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर यावत् स्तनितकुमारों तक (की भाषा के विषय में समझ लेना चाहिए।) 874. बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदिया य णो सच्चं णो मोसं जो सच्चामोसं भासं भासंति, प्रसच्चामोसं भासं भासंति / [874] द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीव न तो सत्यभाषा (बोलते हैं), न मृषाभाषा (बोलते हैं) और न ही सत्यामृषा भाषा बोलते हैं, (किन्तु वे) असत्यामृषा भाषा बोलते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org