________________ तेरसमं परिणामपयं तेरहवाँ परिणामपद परिणाम और उसके दो प्रकार--- 625. कतिविहे गं भंते ! परिणामे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे परिणामे पण्णत्ते / तं जहा-जीवपरिणामे य अजीवपरिणामे य / [925 प्र.] भगवन् ! परिणाम के कितने प्रकार के कहे गये हैं ? [625 उ.] गौतम ! परिणाम के दो प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं—जीव-परिणाम और अजीव-परिणाम / विवेचन परिणाम और उसके दो प्रकार-प्रस्तुत सूत्र में परिणाम के दो भेदों—जीवपरिणाम और अजीवपरिणाम का निरूपण किया गया है। परिणाम' की व्याख्या-'परिणाम' शब्द यहाँ पारिभाषिक है। उसका व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ होता है-परिणमन होना, अर्थात्-किसी द्रव्य की एक अवस्था बदल कर दूसरी अवस्था हो जाना / परिणाम नयों के भेद से विविध और विचित्र प्रकार का होता है। नैगम आदि अनेक नय हैं, परन्तु समस्त नयों के संग्राहक मुख्य दो नय हैं-द्रव्यास्तिक नय और पर्यायास्तिक नय / अतः द्रव्यास्तिक नय के अनुसार परिणाम (परिणमन) का अर्थ होता है-त्रिकालस्थायी (सत्) पदार्थ ही उत्तरपर्याय रूप धर्मान्तर को प्राप्त होता है, ऐसी स्थिति में पूर्वपर्याय का न तो सर्वथा (एकान्तरूप से) अवस्थान और न ही एकान्त रूप से विनाश ही परिणाम है। कहा भी है-परिणाम के वास्तविक रूप के ज्ञाता, द्रव्य का एक पर्याय से दूसरे पर्याय (अर्थान्तर) में जाना ही परिणाम मानते हैं, क्योंकि द्रव्य का न तो सर्वथा अवस्थान होता है और न सर्वथा विनाश / किन्तु पर्यायाथिकनय के अनुसार पर्ववर्ती सत्पर्याय की अपेक्षा विनाश होना और उत्तरकालिक असत्पर्याय की अपेक्षा से प्रादुर्भाव होना परिणाम कहलाता है।' परिणाम के दो प्रकार : क्यों और कैसे ?-परिणाम वैसे तो अनेक प्रकार के होते हैं, किन्तु मुख्यतया दो द्रव्यों का आधार लेकर परिणाम होते हैं, इसलिए शास्त्रकार ने परिणाम के दो मुख्य प्रकार बताए हैं--जीवपरिणाम और अजीवपरिणाम / जीव के परिणाम को जीवपरिणाम और अजीव के परिणाम को अजीवपरिणाम कहते हैं। 1. (क) प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक 284 / (ख) 'परिणमनं परिणामः।' 'परिणामो ह्यन्तिरगमनं, न च सर्वथा व्यवस्थानम् / न च सर्वथा विनाशः परिणामस्तदविदामिष्टः॥१॥' सत्पर्यायेण विनाश: प्रादुर्भावोऽसद्भावपर्ययत: / द्रव्याणां परिणामः प्रोक्तः खल पर्य यनयस्य // 2 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org