________________ पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : प्रथम उद्देशक ] [ 149 [2] एवं जाव फासिदिए / [975-2] इसी प्रकार (चक्षुरिन्द्रिय से लेकर) यावत् स्पर्शेन्द्रिय के बाहल्य के विषय में समझना चाहिए। 676. [1] सोइंदिए णं भंते ! केवतियं पोहत्तेणं पण्णत्ते। गोयमा ! अंगुलस्य असंखेज्जति भागं पोहत्तेणं पण्णत्ते। [976-1 प्र.] भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय कितनी पृथु = विशाल (विस्तारवाली) कही गई है ? [976-1 उ.] गौतम ! (श्रोत्रेन्द्रिय) अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण पृथु-विशाल कही है। [2] एवं चक्खिदिए वि धाणिदिए वि / [976-2] इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय एवं घ्राणेन्द्रिय (को पृथता-विशालता) के विषय में (समझना चाहिए)। [3] जिभिदिए णं पुच्छा। गोयमा ! अंगुलपुहत्तं पोहत्तेणं पण्णत्ते। [976-3 प्र.] भगवन् ! जिह्वन्द्रिय कितनी पृथु (विस्तृत) कही गई है ? [976-3 उ.] गौतम ! जिहन्द्रिय अंगुल-पृथक्त्व (दो अंगुल से नौ अंगुल तक) विशाल (विस्तृत) है। [4] फासिदिए गं पुच्छा। गोयमा ! सरीरपमाणमेत्ते पोहत्तेणं पण्णत्ते। [676-4 प्र.] भगवन् ! स्पर्शेन्द्रिय के पृथत्व (विस्तार) के विषय में पृच्छा (का समाधान क्या है ?) [976-4 उ.] गौतम ! स्पर्शेन्द्रिय शरीरप्रमाण पृथु (विशाल) कही है। विवेचन-द्वितीय-तृतीय बाहल्य-पथुत्वद्वार--प्रस्तुत दो सूत्रों (सू. 175-976) में दो द्वारों के माध्यम से पांचों इन्द्रियों के बाहल्य (स्थूलता) एवं पृथुत्व (विस्तार) का प्रमाण प्रतिपादित किया गया है। सभी इन्द्रियों का बाहल्य समान क्यों ?--बाहल्य की अपेक्षा से सभी इन्द्रियाँ अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं / इस विषय में एक शंका है कि 'यदि स्पर्शेन्द्रिय का बाहल्य (स्थूलता) अंगुल का असंख्यातवाँ भाग प्रमाण है तो तलवार, छुरी आदि का प्राधात लगने पर शरीर के अन्दर वेदना का अनुभव क्यों होता है ?' इसका समाधान यह है कि जैसे चक्षुरिन्द्रिय का विषय रूप है, घ्राणेन्द्रिय का विषय गन्ध है, वैसे ही स्पर्शेन्द्रिय का विषय शीत आदि स्पर्श है; किन्तु जब तलवार और छुरी आदि का आघात लगता है, तब शरीर में शीत आदि स्पर्श का वेदन नहीं होता, अपितु दुःख का वेदन होता है / दुःखरूप उस वेदन को आत्मा समग्र शरीर से अनुभव करती है, केवल स्पर्शेन्द्रिय से नहीं / जैसे-ज्वर आदि का वेदन सम्पूर्ण शरीर में होता है / शीतलपेय (ठंडे शर्बत आदि) के पीने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org