________________ 142] [प्रज्ञापनासून [964-1 उ.] गौतम ! चार कारणों से जीवों ने आठ कर्मप्रकृतियों का चय किया / वे इस प्रकार हैं-१. क्रोध से, 2. मान से, 3. माया से और 4. लोभ से / [2] एवं रइयाणं जाव वेमाणियाणं / [964-2] इसी प्रकार की प्ररूपणा नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक के विषय में समझनी चाहिए। 665. [1] जोवा णं भंते ! कतिहि ठाणेहिं अट्ट कम्मपगडीमो चिणंति ? गोयमा ! चहिं ठाणेहिं / तं जहा–कोहेणं 1 माणेणं 2 मायाए 3 लोमेणं 4 / |965-1 प्र.] भगवन् ! जीव कितने कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का चय करते हैं ? [965-1 उ.] गौतम ! चार कारणों से जीव पाठ कर्मप्रकृतियों का चय करते हैं। वे इस प्रकार हैं-(१) क्रोध से, (2) मान से, (3) माया से और (4) लोभ से / [2] एवं रइया जाव वेमाणिया। [665-2J इसी प्रकार नारकों से लेकर वैमानिकों तक के (विषय में प्ररूपणा करनी चाहिए।) 666. [1] जीवा णं भंते ! कहि ठाणेहि अट्ट कम्भपगडीयो चिणिस्संति ? गोयमा ! चहि ठाहिं अट्ठ कम्मपगडीयो चिणिस्संति / तं जहा--कोहेणं 1 माणेणं 2 मायाए 3 लोभेणं 4 / [966-1 प्र.] भगवन् ! जीव कितने कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का चय करेंगे ? [966-1 उ.] गौतम ! चार कारणों से जीव पाठ कर्मप्रकृतियों का चय करेंगे। वे इस प्रकार हैं- (1) क्रोध से, (2) मान से, (3) माया से और (4) लोभ से / [2] एवं रइया जाव वेमाणिया / [966-2] इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक के (विषय में प्ररूपणा करनी चाहिए।) 667. [1] जोवा णं भंते ! कइहि ठाणेहि अटु कम्मपगडोश्रो उचिणिसु / गोयमा ! चरहिं ठाणेहि अट्ठ कम्मपगडीओ उचिणिसु / तं जहा-कोहेणं 1 माणेणं 2 मायाए 3 लोभेणं 4 / [967-1 प्र.] भगवन् ! जीवों ने कितने कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का उपचय किया है ? [667-1 उ.] गौतम! जीवों ने चार कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का उपचय किया है। वे इस प्रकार हैं-(१) क्रोध से, (2) मान से, (3) माया से और (4) लोभ से / / [2] एवं रइया जाव वेमाणिया / [967-2] इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर यावत् वैमानिकों तक के (विषय में समझना चाहिए)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org