________________ तेरहवां परिणामपद [125 [635 प्र.] भगवन् ! दर्शनपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ? |635 उ.] गौतम ! (दर्शनपरिणाम) तीन प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार-- (1) सम्यग्दर्शनपरिणाम, (2) मिथ्यादर्शनपरिणाम और (3) सम्यमिथ्यादर्शनपरिणाम / 636. चरित्तपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते / तं जहा—सामाइयचरित्तपरिणाम 1 छेदोवढावणियचरित्तपरिणामे 2 परिहारविसुद्धियचरित्तपरिणामे 3 सुहमसंपरायचरित्तपरिणामे 4 अहक्खायचरित. परिणाम। [936 प्र.] भगवन ! चारित्रपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ? [636 उ.] गौतम ! (चारित्रपरिणाम) पांच प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार-- (1) सामायिकचारित्रपरिणाम, (2) छेदोपस्थापनीयचारित्रपरिणाम, (3) परिहारविशुद्धिचारित्रपरिणाम, (4) सूक्ष्मसम्परायचारित्रपरिणाम और (5) यथाख्यातचारित्रपरिणाम / 637. वेयपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते / तं जहा-इस्थिवेयपरिणामे 1 पुरिसवेयपरिणामे 2 पसगवेयपरिणामे 3 / [937 प्र.] भगवन् ! वेदपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ? [937 उ.] गौतम ! (वेदपरिणाम) तीन प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार -(1) स्त्रीवेदपरिणाम (2) पुरुषवेदपरिणाम और (3) नपुंसकवेदपरिणाम / विवेचन-दशविध जीवपरिणाम और उसके भेद-प्रभेद-प्रस्तुत 12 सूत्रों (सु. 626 से 937 तक) में गतिपरिणाम आदि 10 प्रकार के जीवपरिणामों का उल्लेख करके प्रत्येक के भेदों का निरूपण किया गया है। गतिपरिणाम प्रादि को व्याख्या-(१) गति-परिणाम-नरकादि गति नामकर्म के उदय से जिसकी प्राप्ति हो, उसे 'गति' कहते हैं, नरकादिगतिरूप परिणाम, अर्थात् नारकत्व आदि पर्यायपरिणति जीव का गतिपरिणाम है। (2) इन्द्रिय-परिणाम–इन्दन होने से,—अर्थात्-ज्ञानरूप परमऐश्वर्य के योग से आत्मा 'इन्द्र' कहलाता है। जो इन्द्र का लिंग-साधन हो, वह इन्द्रिय है। इसका फलितार्थ यह हुआ कि (इन्द्र) आत्मा का जो मुख्य साधन (करण) हो, वह इन्द्रिय है / इन्द्रियरूप परिणाम इन्द्रियपरिणाम है / (3) कषायपरिणाम-जिसमें प्राणी परस्पर एक दूसरे का कर्षण-- हिंसा (घात) करते हैं, उसे 'कष' कहते हैं या जो कष अर्थात्-संसार को प्राप्त कराते हैं, वे कषाय हैं। जोव की कषायरूप गति को कपायपरिणाम कहते है। (4) लेश्यापरिणाम-लेश्या के स्वरूप आगे कहा जाएगा। लेश्यारूप परिणमन को लेश्यापरिणाम कहते हैं / (5) योगपरिणाम-मन, वचन एवं काय के व्यापार को योग कहते हैं / योगरूप परिणमन योगपरिणाम है / (6) उपयोगपरिणाम-चेतनाशक्ति के व्यापार रूप साकार-अनाकार-ज्ञानदर्शनात्मक परिणाम को कहते हैं। उपयोगरूप परिणाम उपयोगपरिणाम है। (7) ज्ञानपरिणाम-मतिज्ञानादिरूप परिणाम को ज्ञानपरिणाम कहते हैं। (8) दर्शनपरिणाम-सम्यग्दर्शन आदि रूप परिणाम दर्शन-परिणाम है। (8) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org