________________ 134] [प्रज्ञापनासून [955 प्र.) भगवन् ! स्पर्शपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ? [955 उ.] गौतम ! (स्पर्शपरिणाम) आठ प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है(2) कर्कश (कठोर) स्पर्शपरिणाम. (2) मदस्पर्शपरिणाम (3) गुरुस्पर्शपरिणाम. (4) लघस्पर्शपरिणाम, (5) उष्णस्पर्शपरिणाम, (6) शीतस्पर्शपरिणाम, (7) स्निग्धस्पर्शपरिणाम और (8) रूक्षस्पर्शपरिणाम। 656. प्रगस्यलयपरिणाम णं भंते ! कतिविहे पण्णते ? गोयमा ! एगागारे पण्णत्ते। [956 प्र.] भगवन् ! अगुरुलघुपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ? [956 उ.] गौतम ! (अगुरुलघुपरिणाम) एक ही प्रकार का कहा गया है / 957. सहपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णते? गोयमा! दुविहे पण्णत्ते / तं जहा-सुम्भिसहपरिणामे य दुन्भिसहपरिणामे य / से तं अजीवपरिणाम। ॥पण्णवणाए भगवईए तेरसमं परिणामपयं समत्तं // [957 प्र.] भगवन् ! शब्दपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ? [657 उ.] गौतम ! (शब्दपरिणाम) दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार--सुरभि (शुभ–मनोज्ञ) शब्द परिणाम और दुरभि (अशुभ-अमनोज्ञ) शब्दपरिणाम / यह हुई अजीवपरिणाम की प्ररूपणा ! विवेचन-अजीयपरिणाम तथा उसके भेद-प्रभेदों को प्ररूपणा–प्रस्तुत ग्यारह सूत्रों (सू. 647 से 957 तक) में से प्रथम सूत्र (947) में अजीवपरिणाम के दस भेदों की तथा शेष दस सूत्रों में उन दस भेदों में से प्रत्येक के प्रभेदों की क्रमश: प्ररूपणा की गई है। बन्धनपरिणाम की व्याख्या-दो या अधिक पुद्गलों का परस्पर बन्ध (जुड़) जाना, श्लिष्ट हो जाना, एकत्वपरिणाम या पिण्डरूप हो जाना बन्धन या बन्ध है / इसके दो प्रकार हैं-स्निग्धबन्धनपरिणाम और रूक्षबन्धनपरिणाम / स्निग्ध पुद्गल का बन्धनरूप परिणाम स्निग्धबन्धनपरिणाम है और रूक्ष पुद्गल का बन्धनरूप परिणाम रूक्षबन्धनपरिणाम है। __ बन्धनपरिणाम के नियम-स्निग्ध का तथा रूक्ष का बन्धनपरिणाम किस प्रकार एवं किस नियम से होता है ? इसे शास्त्रकार दो गाथाओं द्वारा समझाते हैं-यदि पुद्गलों में परस्पर समस्निग्धता--समगुणस्निग्धता होगी तो उनका बन्ध (बन्धन) नहीं होगा, इसी प्रकार पुद्गलों में परस्पर समरूक्षता–समगणरूक्षता (समान अंश-गूणवाली रूक्षता) होगी तो भी उनका बन्ध नहीं होगा। तात्पर्य यह है कि समगुणस्निग्ध परमाणु आदि का समगुणस्निग्ध परमाणु आदि के साथ सम्बन्ध (बन्ध) नहीं होता; इसी प्रकार समगुणरूक्ष परमाणु आदि का समगुणरूक्ष परमाणु आदि के साथ बन्ध नहीं होता; किन्तु स्निग्धत्व और रूक्षत्व की विषममात्रा होती है, तभी स्कन्धों का बन्ध होता है। अर्थात्--स्निग्ध स्कन्ध यदि स्निग्ध के साथ और रूक्ष स्कन्ध यदि रूक्ष स्कन्ध के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org