________________ बारहबां शरीरप] [109 615. एवं प्राउक्काइया तेउक्काइया वि। [915] इसी प्रकार अप्कायिकों और तेजस्कायिकों (के बद्ध-मुक्त सभी शरीरों) की वक्तव्यता (समझनी चाहिए / ) क्काइयाणं भंते ! केवतिया पोरालिया सरीरा पण्णता? गोयमा! दुविहा पण्णत्ता / तं जहा~~बद्ध ल्लगा य मुक्केल्लगा य / दुविहा वि जहा पुढविकाइयाणं पोरालिया (सु. 614 [1]) / [916-1 प्र. भगवन् ! वायुकायिक जीवों के औदारिक शरीर कितने कहे गए हैं ? [916-1 उ. गौतम ! (वे) दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार-बद्ध और मुक्त / इन बद्ध और मुक्त दोनों प्रकार के प्रौदारिक शरीरों को वक्तव्यता जैसे (सू. 914-1 में) पृथ्वीकायिकों के (बद्ध-मुक्त) औदारिक शरीरों की (वक्तव्यता है) तदनुसार समझना चाहिए / [2] वेउन्वियाणं पुच्छा। गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता / तं जहा-बद्धलगा य मक्केल्लगा य / तत्थ णं जे ते बद्धलगा ते णं असंखेज्जा, समए समए प्रवहीरमाणा अवहीरमाणा पलिग्रोवमस्स असंखेज्जतिभागमेत्तेणं कालेणं अवहोरंति णो चेव णं अवहिया सिया / मुक्केल्लया जहा पुढविक्काइयाणं (सु. 614 [2]) / [616-2 प्र.] भगवन् ! वायुकायिकों के वैक्रियशरीर कितने कहे गए हैं ? [616-2 उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के हैं-बद्ध और मुक्त / उनमें जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं / (कालतः) यदि समय-समय में एक-एक शरीर का अपहरण किया जाए तो पल्योपम के असंख्यातवें भागप्रमाण काल में उनका पूर्णत: अपहरण होता है। किन्तु कभी अपहरण किया नहीं गया है (उनके ) मुक्त शरीरों की प्ररूपणा (सू. 914-2 में उल्लिखित) पृथ्वीकायिकों (के मुक्त वैक्रिय शरीरों) को तरह समझनी चाहिए। [3] प्राहराय-तेया-कम्मा जहा पुढबिकाइयाणं (सु. 614 [3-4]) / तहा भाणियव्वा / [916-3] (इनके बद्ध-मुक्त) आहारक, तैजस और कार्मण शरीरों ( की प्ररूपणा ) (सू. 614-3 / 4 में उल्लिखित) पृथ्वीकायिकों (के बद्ध-मुक्त आहारक, तैजस और कार्मण शरीरों) की तरह करनी चाहिए। 917. वणप्फइकाइयाणं जहा पुढ विकाइयाणं। णवरं तेया-कम्मगा जहा प्रोहिया तेयाकम्मगा (सु. 610 [4-5]) / [617] वनस्पतिकायिकों (के बद्ध-मुक्त औदारिकादि शरीरों) की प्ररूपणा पृथ्वीकायिकों (के बद्धमुक्त औदारिकादि शरीरों) की तरह समझना चाहिए / विशेष यह है कि इनके तेजस और कार्मण शरीरों का निरूपण (सू. 910-4 / 5 के अनुसार) औधिक तैजस-कार्मण-शरीरों के समान करना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org