Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 116 [ प्रज्ञापनासून यह द्वितीय वर्ग हुआ, फिर 16 को 16 के साथ गुणा करने पर 256 संख्या आई, यह तृतीय वर्ग हुआ / 256 को 256 के साथ गुणा करने पर 65536 राशि आती है, यह चौथा वर्ग हुआ। इस चौथे वर्ग की राशि का पुनः इसी राशि के साथ गुणा करने पर 4294667296 संख्या आती है / यह पांचवाँ वर्ग हुअा। पंचम वर्ग की 'चार सौ उनतीस करोड़, उनचास लाख, सड़सठ हजार दो सौ छयानवे' राशि का इसी राशि के साथ गुणाकार करने पर 18446744073709551616 राशि आई. यह छठा वर्ग हआ।' इस छठे वर्ग का पूर्वोक्त पंचमवग के सा पंचमवर्ग के साथ गुणाकार करने पर जो राशि निष्पन्न होती है, जघन्यपद में उतने ही मनुष्य हैं / यह राशि पूर्वोक्त 29 (उनतीस) अंकों में इस प्रकार से है-७९२२८१६२५१४२६४३३७५९३५४३९५०३३६-ये उनतीस अंक कोटाकोटी आदि के द्वारा किसी भी तरह कहे नहीं जा सकते / अनुयोगद्वारवृत्ति में (विपरीत क्रम से अंकों की गणना होती है इस न्याय के अनुसार) यह संख्या दो गाथाओं द्वारा बताई है / अथवा पूर्वाचार्यों ने अंकों के प्रथम अक्षर को लेकर विपरीत क्रम से एक गाथा में यही संख्या बताई है। अब इसी संख्या को प्रकारान्तर से समझाने के लिए शास्त्रकार कहते हैं / 'महब गं छण्णउईछेयणगदायी रासो' छयानवे छेदनकदायी राशि की व्याख्या इस प्रकार है-जो आधी-आधी छेदन करते-करते छयानवे वार छेदन को प्राप्त हो, और अन्त में एक बच जाए; वह छयानवे छेदनकदायी राशि कहलाती है। यह राशि उतनी ही है, जितनी पंचमवर्ग का छठे वर्ग के साथ गुणाकार करने पर होती है। वह संख्या इस प्रकार होती है--प्रथम (पूर्वोक्त) वर्ग यदि छेदा जाए तो दो छेदनक देता है--पहला छेदनक दो और दसरा छेदनक एक / दोनों को मिलाकर दो छेदनक हए / इसी प्रकार दूसरे वर्ग के चार छेदनक होते हैं। क्योंकि वह 16 संख्या वाला है / उसका प्रथम छेदनक 8, दूसरा 4, तीसरा 2 और 1. चत्तारि य कोडिसया अउणतीसं च होति कोडीयो। अउणावन्न लक्खा सत्तट्टी चेव य सहस्सा // 1 // दोय सया छण्णउया पंचमवग्गो समासग्रो होइ / एयरस कतो वग्गो छट्रो जो होइ तं बोच्छं॥ 2 // लक्खं कोडाकोडी चउरासीइ भवे सहस्साई / चत्तारि य सत्तट्ठा होंति सया कोडकोडीणं / / 3 / / चउयालं लक्खाई कोडीणं सत्त चेव य सहस्सा / तिणि सया सत्तयरी कोडीणं हंति नायव्वा // 4 // पंचाणउई लक्खा एकावन्नं भवे सहस्साई / छसोलसुत्तरसया एसो छलो हवइ बग्गो // 5 // --प्रज्ञापना. म. वृत्ति, पत्रांक 28 2. छत्तिन्नि तिनि सुन्न पंचेव य नव य तिन्नि चत्तारि / पंचेव तिष्णि नव पंच सत्त तिन्नेव तिन्लेव // 1 // चउ छहो चउ एक्को पण छक्केक्कगो य अटूब। दो दो नब सत्तेव य अंकट्ठाणा परा हुंता ।।-अनुयोग० वृत्ती छ-ति-ति-सु-पण-नव-ति-च-प-ति-ण-प-स-ति-ति-चउ-छ-दो। च-ए-प-दो-छ-ए-अ-बे-बे-ण-स पढमक्खरसंतियढाणा // 1 // ---प्र.म.व. पत्रांक, 281 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org