________________ 76 ] [ प्रज्ञापनासूत्र गोयमा ! णो एगपएसोगाढाई गेण्हति जाव णो संखेज्जपएसोगाढाई गेण्हति, असंखेज्जपएसोगाढाइं गेण्हति। [877-4 प्र.] जिन (स्थित द्रव्यों को जीव) क्षेत्रत: ग्रहण करता है, क्या (वह जीव) एकप्रदेशावगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है, द्विप्रदेशावगाढ़ द्रव्यों को ग्रहण करता है, यावत् असंख्येयप्रदेशावगाढ़ द्रव्यों को ग्रहण करता है ? [877-4 उ.] गौतम ! (वह) न तो एकप्रदेशावगाढ़ द्रव्यों को ग्रहण करता है, यावत् न संख्यातप्रदेशावगाढ़ द्रव्यों को ग्रहण करता है, (किन्तु) असंख्यातप्रदेशावगाढ़ द्रव्यों को ग्रहण करता है। [5] जाई कालो गेण्हति ताई कि एगसमयद्वितीयाइं गेहति दुसमयठितीयाई गेण्हति जाव असंखेज्जसमयठितीयाई गेण्हति ? गोयमा ! एगसमठितीयाई पि गेहति, दुसमयठितीयाई पि गेहति, जाव असंखेज्जसमयठितीयाई पि गेहति / [877-5 प्र.] (जीव) जिन (स्थित द्रव्यों) को कालत: ग्रहण करता है, क्या (वह) एक मय की स्थिति वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है, दो समय की स्थिति वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है? यावत् असंख्यात समय की स्थिति वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? [877-5 उ.] गौतम ! (वह) एक समय की स्थिति वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है, दो समय की स्थिति वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है, यावत् असंख्यात समय की स्थिति वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है। [6] जाई भावप्रो गेण्हति ताई कि वण्णमंताई गेण्हति गंधमंताई गेहति रसमंताई गेण्हति फासमंताई गेहति ? गोयमा! अण्णमंताई पि गेण्हति जाव फासमंताई पि गेण्हति / [877-6 प्र.] (जीव) जिन (स्थित द्रव्यों) को भावतः ग्रहण करता है, क्या वह वर्ण वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है, गन्ध वाले द्रव्यों ग्रहण करता है, रस वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है अथवा स्पर्श वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? [877-6 उ.] गौतम ! (वह) वर्ण वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है, गन्ध वाले द्रव्यों को भी यावत स्पर्श वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है। [7] जाई भावप्रो वण्णमंताई गेण्हति ताई कि एगवण्णाई गेण्हति जाव पंचवण्णाई गेण्हति ? गोयमा ! गहणदव्वाई पडुच्च एगवण्णाई पि गेहति जाव पंचवण्णाई पि गेण्हति, सव्वग्महणं पडुच्च णियमा पंचवण्णाइं गेण्हति, तं जहा-कालाई नीलाइं लोहियाई हालिद्दाइं सुक्किलाई। [877-7 प्र.] भावतः जिन वर्णवान् (स्थित) द्रव्यों को (जीव) ग्रहण करता है, क्या (वह) एक वर्ण वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है, यावत पांच वर्ण वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? [877-7 उ] गौतम ! ग्रहण (ग्राह्य) द्रव्यों की अपेक्षा से (वह) एक वर्ण वाले द्रव्यों को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org