Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ ग्यारहवां भाषापद] [77 भी ग्रहण करता है, यावत् पांच वर्ण वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है। (किन्तु) सर्वग्रहण की अपेक्षा से (वह) नियमत: पांच वर्णों वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है। जैसे कि-काले, नीले, लाल. पीले और शुक्ल (सफेद)। [8] जाई वपणनो कालाई गेण्हति ताई कि एगगुणकालाई गेण्हति जाव अणंतगुणकालाई गेण्हति ? ___ गोयमा ! एगगुणकालाई पि गेहति जाव अणंतगुणकालाई पि गेहति / एवं जाय सुक्किलाई पि। [877-8 प्र.] भगवन् ! वर्ण से काले जिन (स्थित द्रव्यों) को (जीव) ग्रहण करता है, क्या (वह) उन एकगुण काले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? अथवा यावत् अनन्तगुण काले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? [877-8 उ.] गौतम ! (वह) एकगुणकृष्ण (भाषाद्रव्यों) को भी ग्रहण करता है और यावत् अनन्तगुणकृष्ण (भाषाद्रव्यों) को भी ग्रहण करता है। इसी प्रकार यावत् शुक्ल वर्ण तक के ग्राह्य भाषाद्रव्यों के ग्रहण के विषय में भी कहना चाहिए। [[] जाई भावनो गंधमंताई गेण्हति ताई कि एगगंधाइं गेण्हति दुगंधाई गेण्हति ? गोयमा ! गणदब्वाइं पडुच्च एगगंधाई पि गेण्हति दुगंधाई पि गेण्हति, सव्वग्गहणं पडुच्च नियमा दुगंधाइं गेण्हति / [877-9 प्र.] भावतः जिन गन्धवान् भाषाद्रव्यों को (जीव) ग्रहण करता है, क्या (वह) एक गन्ध वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? या दो गन्ध वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? [877-6 उ.] गौतम ! ग्रहण द्रव्यों की अपेक्षा से (वह) एक गन्ध वाले (भाषाद्रव्यों को) भी ग्रहण करता है, तथा दो गन्ध वाले (द्रव्यों को भी ग्रहण करता है; (किन्तु) सर्व ग्रहण की अपेक्षा से नियमतः दो गन्ध वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है / [10] जाइं गंघओ सुम्भिगंधाइं गेहति ताई कि एगगुणसुम्भिगंधाई गेण्हति जाव प्रणतगुणसुन्मिगंधाई गेण्हति ? गोयमा ! एगगुणसुब्भिगंधाई पि गेण्हति जाव अणंतगुणसुम्ब्भिगंधाई पि गेण्हति / एवं दुन्मिगंघाई पि गेण्हति / [877-10 प्र.] (भगवन् ! ) गन्ध से सुगन्ध वाले जिन (भाषाद्रव्यों) को (जीव) ग्रहण करता है, क्या (वह) एकगुण सुगन्ध वाले (भाषाद्रव्यों को) ग्रहण करता है, (अथवा) यावत् अनन्तगुण सुगन्ध वाले (भाषाद्रव्यों को) ग्रहण करता है ? [877-10 उ.] गौतम ! (वह) एकगुणसुगन्ध वाले (भाषाद्रव्यों को) भी ग्रहण करता है, यावत् अनन्तगुण सुगन्ध वाले (भाषाद्रव्यों को) भी ग्रहण करता है / इसी तरह वह एकगुण दुर्गन्ध वाले (भाषाद्रव्यों को) भी ग्रहण करता है, यावत् अनन्तगुण दुर्गन्ध वाले (भाषाद्रव्यों को) भी ग्रहण करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org