________________ बारहवां शरीरपद] तेज का जो विकार हो, उसे तैजस शरीर और जो शरीर कर्म का समूह रूप हो, उसे कर्मज या कार्मण शरीर कहते हैं। उत्तरोत्तर सूक्ष्मशरीर-औदारिक प्रादि शरीरों का इस प्रकार का क्रम रखने का कारण उनकी उत्तरोत्तर सूक्ष्मता है।' चौबीस दण्डकवर्ती जीवों में शरीर-प्ररूपणा 902. रइयाणं भंते ! कति सरीरया पण्णत्ता ? गोयमा ! तो सरीरया पण्णत्ता / तं जहा-वेउब्धिए तेयए कम्मए / [902 प्र.] भगवन् ! नैरयिकों के कितने शरीर कहे गए हैं ? [902 उ.] गौतम ! उनके तीन शरीर कहे हैं / वे इस प्रकार वैक्रिय, तैजस और कार्मण शरीर / 903. एवं असुरकुमाराण वि जाव थणियकुमाराणं / _[903] इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर यावत् स्तनितकुमारों तक के शरीरों की प्ररूपणा समझना चाहिए। 604. पुढविक्काइयाणं भंते ! कति सरीरया पण्णता? गोयमा ! तो सरीरया पण्णत्ता / तं जहा-पोरालिए तेयए कम्मए / [904 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के कितने शरीर कहे गए हैं ? [904 उ.] गौतम ! उनके तीन शरीर कहे हैं। वे इस प्रकार-औदारिक, तैजस एवं कार्मण शरीर। 905. एवं वाउक्काइयवज्जं जाव चरिंदियाणं / [905] इसी प्रकार वायुकायिकों को छोड़कर यावत् चतुरिन्द्रियों तक के शरीरों के विषय में जानना चाहिए। 606. वाउक्काइयाणं भंते ! कति सरीरया पण्णत्ता? गोयमा! चत्तारि सरीरया पण्णत्ता / तं जहा--पोरालिए वेउम्विए तेयए कम्मए / [906 प्र.] भगवन् ! वायुकायिकों के कितने शरीर कहे गए हैं ? 1. (क) प्रज्ञापनासत्र मलय. वत्ति, पत्रांक 268-269 (ख) “ओरालं नाम वित्थरालं विसालति जंभणिय होइ, कहं ?' साइरेमजोयणसहस्समबट्ठियप्पमाणओरालियं अन्नमेद्दहमेत नत्थित्ति विउविवयं होज्जा तं तु अणट्ठियप्पमाणं, अवट्ठियं पुण पंच धणुसयाई अहेसत्तमाए इमं पुण अवट्टियप्पमाणं साइरेगं जोयणसहस्सं"॥" (ग) “विविहा विसिद्धगा य किरिया, तीए उजं भवं तमिह / वेउब्वियं तयं पुण नारगदेवाण पगईए॥" -प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक 269 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org