________________ 98] [ प्रज्ञापनासूत्र [906 उ.] गौतम ! (उनके) चार शरोर कहे हैं। वे इस प्रकार-औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण शरीर / 907. एवं पंचिदियतिरिक्खजोणियाण वि। [907] इसी प्रकार पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों के शरीरों के विषय में भी समझना चाहिए / 608. मणसाणं भंते ! कति सरीरया पण्णता? गोयमा! पंच सरीरया पण्णत्ता / तं जहा-पोरालिए वेउव्विए पाहारए तेयए कम्मए। [608 प्र. भगवन् ! मनुष्यों के कितने शरीर कहे गए हैं ? [908 उ.] गौतम ! मनुष्यों के पांच शरीर कहे गए हैं। वे इस प्रकार-प्रौदारिक, वैक्रिय, पाहारक, तैजस और कार्मण / 606. वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणियाणं जहा णारगाणं [सु. 602] / [606] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों के शरीरों की वक्तव्यता नारकों की तरह (सू. 902 के अनुसार) कहना चाहिए। विवेचन-चौवीस दण्डकवर्ती जीवों में शरीरप्ररूपणा-नैरयिक से लेकर वैमानिक तक 24 दण्डकों में से किसमें कितने शरीर पाए जाते हैं ? इसकी प्ररूपणा प्रस्तुत आठ सूत्रों में की गई है। पांचों शरीरों के बद्ध-मुक्त शरीरों का परिमाण 610. [1] केवतिया णं भंते ! पोरालियसरीरया पण्णता? __ गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता। तं जहा-बद्ध ल्लया य मुक्केल्लया य / तत्थ णं जे ते बद्ध ल्लगा हे गं असंखेज्जगा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-प्रोसपिणोहिं अवहोरंति कालो, खेत्तनो असंखेज्जा लोगा। तत्थ णं जे ते मुक्केल्लया ते णं अणंता, अणताहि उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीहि अवहीरंति कालप्रो, खेत्तनो प्रणेता लोगा, दन्वनो प्रभवसिद्धिएहितो अणंतगुणा सिद्धाणं अणंतभागो। [910-1 प्र.] भगवन् ! औदारिक शरीर कितने कहे गए हैं ? [610-13.] गौतम ! (वे) दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-बद्ध और मुक्त / उनमें जो बद्ध (जीव के द्वारा ग्रहण किये हुए) हैं, वे असंख्यात हैं, काल से-वे असंख्यात उत्सपिणियों-अवपिणियों (कालचक्रों) से अपहृत होते हैं / क्षेत्र से-वे असंख्यातलोक-प्रमाण हैं। उनमें जो मुक्त (जीव के द्वारा छोड़े हुए-त्यागे हुए) हैं, वे अनन्त हैं। काल से--वे अनन्त उत्सपिणियों-अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं / क्षेत्र से--अनन्तलोकप्रमाण हैं / द्रव्यत:--मुक्त औदारिक शरीर अभवसिद्धिक (अभव्य) जीवों से अनन्तगुणे और सिद्धों के अनन्तवें भाग हैं / [2] केवतिया णं भंते ! वेउब्वियसरीरया पण्णता? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता / तं जहा बद्धल्लया य मुक्केल्लया य। तत्थ णं जे ते बद्धल्लगा ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहि उस्सप्पिणि-प्रोसप्पिणीहि अवहीरंति कालो, खेतो असंखेज्जासो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org