________________ 104] [प्रज्ञापनासूत्र शरीरों के विषय में कहा है, उसी प्रकार (यहाँ-नैरयिकों के मुक्त औदारिक शरीरों के विषय में) भी कहना चाहिए। [2] रइयाणं भंते ! केवड्या वेउब्वियसरीरा पण्णता? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता। तं जहा-बदल्लगा य मुक्केल्लगा य / तत्थ णं जे ते बद्ध ल्लया ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणी-प्रोसप्पिणीहि अवहीरंति कालो, खेत्तनो प्रसंखेज्जाओ सेढीमो पतरस्स असंखेज्जतिभागो, तासि णं सेढोणं विक्खंभसूई अंगुलपढमवग्गमूलं बीयवागमूलपडुप्पणं, अहव णं अंगुलबितियवग्गमूलघणप्पमाणमेत्तापो सेढीयो / तत्थ गं जे ते मुक्केल्लगा ते णं जहा पोरालियस्स मुक्केल्लगा (सु. 611 [1]) तहा भाणियन्वा / [911-2 प्र.] भगवन् ! नैरयिकों के वैक्रियशरीर कितने कहे गए हैं ? [911-2 उ.] गौतम ! (नैरयिकों के वैक्रियशरीर) दो प्रकार के कहे गए हैं / वे इस प्रकार-बद्ध और मुक्त / उनमें जो बद्ध (वैक्रियशरीर) हैं, वे असंख्यात हैं। कालत:-(वे) असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी कालों में अपहत होते हैं। क्षेत्रत:-(वे) असंख्यात श्रेणी-प्रमाण हैं / (श्रेणी) प्रतर का असंख्यातवां भाग हैं। उन श्रेणियों की विष्कम्भसूची (विस्तार की अपेक्षा से एक प्रदेशी श्रेणी) अंगुल के प्रथम वर्गमूल को दूसरे वर्गमूल से गुणित (करने पर निष्पन्न राशि जितनी) होती है अथवा अंगुल के द्वितीय वर्गमल के घन-प्रमाणमात्र श्रेणियों जितनी है। तथा जो (नरयिकों के) मुक्त क्रियशरीर हैं, उनके परिमाण के विषय में (नारकों के) मुक्त औदारिक शरीर के समान (611-1 के अनुसार) कहना चाहिए। [3] गैरइयाणं भंते ! केवतिया पाहारगसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता। तं जहा-बद्धलगा य मुक्केल्लगाय। एवं जहा पोरालिया बद्धलगा य मुक्केल्लगा य भणिया (सु. 611 [1]) तहेव आहारगा वि भाणियत्वा / [911-3 प्र.] भगवन् ! नैरयिकों के आहारक शरीर कितने कहे गए हैं ? [611-3 उ.] गौतम! वे दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार-बद्ध और मुक्त / जैसे (नारकों के) औदारिक बद्ध और मुक्त (सू. 911-1 में) कहे गए हैं, उसी प्रकार (नैरयिकों के बद्ध और मुक्त) आहारक शरीरों के विषय में कहना चाहिए। [4] तेया-कम्मगाई जहा एतेसि चेव वेउध्वियाई / [611-4] (नारकों के) तैजस-कार्मण शरीर इन्हीं के वैक्रियशरीरों के समान कहने चाहिए। विवेचन-नरयिकों के बद्ध-मक्त पंच शरीरों की प्ररूपणा–प्रस्तुत सूत्र (सू. 611-1 से 4) में नैरयिकों के बद्ध और मुक्त पंच शरीरों के परिमाण के विषय में प्ररूपणा की गई है। नैरयिकों के बद्ध-मक्त औदारिकशरीरों की प्ररूपणा-नैरयिकों के बद्ध औदारिक शरीर नहीं होते, क्योंकि जन्म से ही उनमें प्रौदारिक शरीर संभव नहीं है। उनके मुक्त औदारिक शरीरों का कथन पूर्वोक्त औधिक मुक्त औदारिकशरीरों के समान समझना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org