Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ बारहवां शरीरपद : प्राथमिक ] [ 95 शरीर जीव से सिद्धिप्राप्त होने से पूर्व तक कभी विमुक्त नहीं होते। अनादिकाल से ये दोनों शरीर जीव के साथ जुड़े हुए हैं। पुनर्जन्म के लिए गमन करने वाले जीव के साथ भी ये दो शरीर तो अवश्य होते हैं, औदारिकादि शरीरों का निर्माण बाद में होता है।' तत्पश्चात चौबीस दण्डकों में से किसको कितने व कौन से शरीर होते हैं ? इसकी चर्चा है। फिर इन पांचों शरीरों के बद-वर्तमान में जीव के साथ बंधे हुए, तथा मुक्त-पूर्वकाल में बांध कर त्यागे हुए शरीरों तथा समुच्चय में द्रव्य, क्षेत्र, काल की अपेक्षा से उनके परिमाण की चर्चा की गई है। इसके अनन्तर नैरयिकों, भवनवासियों, एकेन्द्रियों, विकलेद्रियों, तिर्यंचपंचेन्द्रियों, मनुष्यों, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क, वैमानिक देवों के बद्ध-मुक्त पांचों शरीरों के परिमाण की चर्चा द्रव्य, क्षेत्र, काल की दृष्टि से की गई है / गणित विद्या की दृष्टि से यह अतीव रसप्रद है।' 1. (क) प्रज्ञापना. म. वत्ति पत्रांक 268-269, (ख) पण्णवणासुत्तं भा. 2 बारहवें पद की प्रस्तावना, पृ. 88-89 2. (क) पण्णवणासुत्त भा. 1, पृ. 223 से 228 (ख) पण्णवणासुत्तं भा. 2, बाहरवें पद की प्रस्तावना, पृ. 89 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org