Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 16] [ प्रज्ञापनासूत्र [882 उ. खण्डभेद (वह है), जो (जैसे) लोहे के खंडों का, रांगे के खण्डों का, तांबे के खण्डों का, शीशे के खण्डों का, चांदी के खण्डों का अथवा सोने के खण्डों का, खण्डक (टुकड़े करने वाले औजार-हथौड़े आदि) से भेद (टुकड़े) करने पर होता है। यह हुआ उस खण्डभेद (का स्वरूप / ) 883. से कि तं पयरामेदे ? 2 जण्णं वंसाण वा वेत्ताण वा पलाण वा कदलित्थंभाण वा अभपडलाण वा पयरएणं मेए भवति / से तं पयरामेदे। [883 प्र.] वह (पूर्वोक्त) प्रतरभेद क्या है ? (883 उ. प्रतरभेद (वह है), जो बांसों का, बेंतों का, नलों का, केले के स्तम्भों का, अभ्रक के पटलों (परतों)का प्रतर से (भोजपत्रादि की तरह) भेद करने पर होता है / यह है वह प्रतरभेद / 884. से कि तं चुणियाभए ? 2 जण्णं तिलचुण्णाण वा मुग्गचण्णाण वा मासचुण्णाण वा पिपलिचुण्णाण वा मिरियचुण्णाण वा सिंगबेरचण्णाण वा चुणियाए भेदे भवति / से तं चुणियाभेदे। [884 प्र.] वह (पूर्वोक्त) चूणिकाभेद क्या है ? [884 उ.] चूणिकाभेद (वह है), जो (जैसे) तिल के चूर्णों (चूरों) का, मूग के चूर्णी (चूरे या पाटे) का, उड़द के चूर्णों (चूरों) का, पिप्पली (पीपल) के चूरों का, कालीमिर्च के चूरों का, चूणिका (इमामदस्ते या चक्की प्रादि) से भेद करने (कूटने या पीसने) पर होता है / यह हुआ उक्त चूर्णिका भेद का स्वरूप / 885. से किं तं प्रणुताडियामेदे ? 2 जण्णं अगडाण वा तलागाण वा दहाण वा गदीण वा वावीण वा पुक्खरिणोण वा दीहियाण वा गुजालियाण वा सराण वा सरपंतियाण वा सरसरपंतियाण वा अणुतडियाए भेदे भवति / से तं प्रणुतडियाभेदे। [885 प्र.] वह अनुतटिकाभेद क्या है (कैसा है) ? [885 उ.] अनुतटिकाभेद (वह है.) जो कूपों के, तालाबों के, ह्रदों के, नदियों के, बावड़ियों के, पुष्करिणियों ( गोलाकार वावड़ियों) के, दीधिकाओं ( लम्बी बावड़ियों ) के, गुंजालिकाओं (टेढ़ीमेढ़ी बावड़ियों) के, सरोवरों के, पंक्तिबद्ध सरोवरों के और नाली के द्वारा जल का संचार होने वाले पंक्तिबद्ध सरोवरों के अनुतटिकारूप में (फट जाने, दरार पड़ जाने या किनारे घिस या कट जाने से) भेद होता है / यह अनुतटिकाभेद का स्वरूप है। 886. से कि तं उक्करियाभेदे ? 2 जण्णं मूसगाण वा मगूसाण वा तिलसिंगाण वा मुग्गसिगाण वा माससिंगाण वा एरंडबीयाण वा फुडित्ता उक्करियाए भेदे भवति / से तं उक्करियाभेए / [886 प्र.] वह (पूर्वोक्त) उत्कटिकाभेद कैसा होता है ? For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org