Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ ग्यारहवां भाषापद] [866 प्र.] भगवन् ! वचन कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [896 उ.] गौतम ! वचन सोलह प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-१. एकवचन, 2. द्विवचन, 3. बहुवचन, 4. स्त्रीवचन, 5. पुरुषवचन, 6. नपुसकवचन, 7. अध्यात्मवचन, 8. उपनीतवचन, 9. अपनीतवचन, 10. उपनीतापनीतवचन, 11. अपनीतोपनीतवचन, 12. अतीतवचन, 13. प्रत्युत्पन्न (वर्तमान), वचन, 14. अनागतवचन (भविष्यद् वचन) 15. प्रत्यक्षवचन और 16. परोक्षवचन / 867. इच्चेयं भंते ! एगवयणं वा जाव परोक्खवयणं वा क्यमाणे पण्णवणो णं एसा भासा ? ण एसा भासा मोसा? हंता गोयमा ! इच्चेयं एगवयणं वा जाव परोक्खवयणं वा वयमाणे पण्णवणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा। [897 प्र.] इस प्रकार एकवचन (से लेकर) यावत् परोक्षवचन (तक 16 प्रकार के वचन) को बोलते हुये (जीव) की क्या यह भाषा प्रज्ञापनी है ? यह भाषा मृषा तो नहीं है ? [897 उ.] हाँ, गौतम ! इस प्रकार एकवचन से लेकर यावत् परोक्षव वन तक (16 वचनों) को बोलते हुए (जीव की) भाषा प्रज्ञापनी है, यह भाषा मृषा नहीं है / 868. कति णं भंते ! भासज्जाया पण्णता? गोयमा! चत्तारि भासज्जाया पण्णता / तं जहा—सच्चमेगं भासज्जाय? बितियं मोसं भासज्जायं 2 ततियं सच्चामोसं भासज्जायं 3 चउत्थं असच्चामोसं मासज्जायं 4 / [898 प्र.] भगवन् ! भाषाजात (भाषा के प्रकार) कितने हैं ? [898 उ.] गौतम ! भाषाजात चार कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं-(१) भाषा का एक जात (प्रकार) सत्या है, (2) भाषा का दूसरा प्रकार मृषा है, (3) भाषा का तीसरा प्रकार सत्यामृषा है और (4) भाषा का चौथा प्रकार असत्यामृषा है। 866. इच्चेयाई भंते ! चत्तारि भासज्जायाई भासमाणे कि पाराहए विराहए ? गोयमा ! इच्चेयाइं चत्तारि भासज्जायाई पाउत्तं भासमाणे प्राराहए, णो विराहए / तेण परं अस्संजयाऽविरयाऽपडिहयाऽपच्चक्खायपावकम्मे सच्चं वा भासं भासंतो मोसं वा सच्चामोसं वा असच्चामोसं वा भासं मासमाणे णो पाराहए, विराहए। [899 प्र.] भगवन् ! इन चारों भाषा-प्रकारों को बोलता हुअा (जीव) आराधक होता है, अथवा विराधक ? [866 उ.] गौतम ! इन चारों प्रकार की भाषानों को उपयोगपूर्वक (पायुक्त होकर) बोलने वाला आराधक होता है, विराधक नहीं। उससे पर--(अर्थात् उपयोगपूर्वक बोलने वाले से भिन्न) जो असंयत, अविरत, पापकर्म का प्रतिघात और प्रत्याख्यान न करने वाला सत्यभाषा बोलता हुमा तथा मृषाभाषा, सत्यामृषा और असत्यामृषा भाषा बोलता हुआ (व्यक्ति) पाराधक नहीं है, विराधक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org