________________ 60 [प्रज्ञापनासूत्र [877-17 प्र.] भगवन् ! (जीव) जिन अवगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है, क्या (वह) उन अनन्तरावगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है, अथवा परम्परावगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है ? [877-17 उ.] गौतम ! (वह) अनन्तरावगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है, किन्तु परम्परावगाढ द्रव्यों को ग्रहण नहीं करता। [18] जाई भंते ! प्रणंतरोगाढाइं गेण्हति ताई कि अणूइं गेहति ? बादराई गेहति ? गोयमा ! अणूई पि गेण्हइ बादराई पि गेण्हति / [877-18 प्र.] भगवन् (जीव) जिन अनन्तरावगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है, क्या (वह) अणुरूप द्रव्यों को ग्रहण करता है, अथवा बादर द्रव्यों को ग्रहण करता है ? [877-18 उ.] गौतम ! (वह) अणुरूप द्रव्यों को भी ग्रहण करता है और बादर द्रव्यों को भी ग्रहण करता है। [16] जाई भंते ! अणूई पि गेण्हति बायराइं पि गेहति ताई कि उड्ढं गेण्हति ? अहे गेहति ? तिरियं गेण्हति ? गोयमा! उड्ढे पि गिहति, अहे वि गिण्हति, तिरियं पि गेहति / [877-16 प्र.] भगवन् जिन अणुद्रव्यों को (जीव) ग्रहण करता है, क्या उन्हें (वह) ऊर्च (दिशा में) स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है, अधः (नीचे) दिशा अथवा तिर्यक् दिशा में स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है ? [877-19 उ.] गौतम ! (वह) अणुद्रव्यों को ऊर्ध्व दिशा में, अधः (नीचे) दिशा में और तिरछी दिशा में स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है / [20] जाई भंते ! उड्ढं पि गेहति अहे वि गेहति तिरियं पि गेहति ताई कि आदि गेण्हति ? मज्झे गेण्हति ? पज्जवसाणे गेहति ? गोयमा ! आई पि गेहति, मज्झे वि गेण्हति, पज्जवसाणे वि गेहति / [877-20 प्र.] भगवन् ! जिन (अणुद्रव्यों) को (जीव) ऊर्ध्व, अधः और तिर्यक् दिशा में स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है, क्या वह उन्हें आदि (प्रारम्भ) में ग्रहण करता है, मध्य में ग्रहण करता है, अथवा अन्त में ग्रहण करता है ? [877-20 उ] गौतम ! वह उन (ऊर्ध्वादिगृहीत द्रव्यों) को आदि में भी ग्रहण करता है, मध्य में भी ग्रहण करता है और पर्यवसान (अन्त) में भी ग्रहण करता है। [21] जाई भंते ! प्राई पि गेहति मज्झे वि गेहति पज्जवसाणे वि गेहति ताई कि सविसए गेहति ? अविसए गेण्हति ? गोयमा ! सविसए गेण्हति, णो अविसए गेहति / [877-21 प्र.] जिन (भाषा) को जीव आदि, मध्य और अन्त में ग्रहण करता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org