________________ 30 ] [प्रज्ञापनासूब 766. परिमंडले णं भंते ! संठाणे अणंतपएसिए कि संखेज्जपएसोगाढे असंखेज्जपएसोगाढे अणंतपएसोगाढे ? गोयमा ! सिय संखेज्जपएसोगाढे असंखेज्जपएसोगाढे, नो अणंतपएसोगाढे। एवं जाव प्रायते। [796 प्र.] भगवन् ! अनन्तप्रदेशी परिमण्डलसंस्थान संख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है, असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है, अथवा अनन्त प्रदेशों में अवगाढ़ होता है ? [766 उ ] गौतम ! (अनन्तप्रदेशी परिमण्डलसंस्थान) कदाचित् संख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है और कदाचित असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है, (किन्तु) अनन्त प्रदेशों में अवगाढ़ नहीं होता। इसी प्रकार (वृत्तसंस्थान से लेकर) आयतसंस्थान तक (के विषय में समझना चाहिए।) 767. परिमंडले णं भंते ! संठाणे संखेज्जपदेसिए संखेज्जपएसोगाढे कि चरिमे अचरिमे चरिमाई प्रचरिमाइं चरिमंतपदेसा प्रचरिमंतपदेसा? गोयमा! परिमंडले णं संठाणे संखेज्जपदेसिए संखेज्जपदेसोगाढ नो चरिमे नो अचरिमे नो चरिमाई नो प्रचरिमाइंनो चरिमंतपदेसा नो अचरिमंतपएसा, नियमा प्रचरिमं च चरिमाणि य चरिमंतपदेसा य अचरिमंतपदेसा य / एवं जाव प्रायते / [797 प्र.] भगवन् ! संख्यातप्रदेशी एवं संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान चरम है, अचरम है, (बहुवचनान्त) अनेक चरमरूप है, अनेक अचरमरूप है, चरमान्तप्रदेश है अथवा अचरमान्त प्रदेश है ? [797 उ.] गौतम ! संख्यातप्रदेशी और संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान, न तो चरम है, न अचरम है, न (बहुवचनान्त) चरम है, न (बहुवचनान्त) अचरम है, न चरमान्तप्रदेश है और न ही अचरमान्तप्रदेश है, किन्तु नियम से अचरम, (बहुवचनान्त) अनेक चरमरूप, चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश है। ___ इसी प्रकार (संख्यातप्रदेशी संख्यातप्रदेशावगाढ़ वृत्तसंस्थान से लेकर) यावत् प्रायतसंस्थान तक (के विषय में कहना चाहिए।) 798, परिमंडले णं भंते ! संठाणे असंखेज्जपएसिए संखेज्जपदेसोगाढे कि चरिमे० पुच्छा। गोयमा ! असंखेज्जपएसिए संखेज्जपएसोगाढे जहा संखेज्जपएसिए (सु. 767) / एवं जाव प्रायते। [798 प्र.] भगवन् ! असंख्यातप्रदेशी और संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान क्या चरम है, अचरम है, (बहुवचनान्त) अनेक चरम, अनेक अचरमरूप है, चरमान्तप्रदेश है, अथवा अचरमान्तप्रदेश है ? [798 उ.] गौतम ! असंख्यातप्रदेशी एवं संख्यातप्रदेशों में अवगाढ़ परिमण्डलसंस्थान के विषय में (सू. 797 में उल्लिखित) संख्यातप्रदेशी के समान ही समझना चाहिए। इसी प्रकार (असंख्यातप्रदेशी संख्यातप्रदेशावगाढ वृत्तसंस्थान से लेकर) यावत आयतसंस्थान तक समझना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org