Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ ग्यारहवां भाषापद हंता गोयमा ! मणुस्से जाव चिल्ललए जे यावऽण्णे तहप्पगारा सवा सा एगवयू / [849 प्र.] भगवन् ! मनुष्य, महिष (भैंसा), अश्व, हाथी, सिंह, व्याघ्र, वृक (भेड़िया), द्वीपिक (दोपड़ा), ऋक्ष (रीछ = भालू), तरक्ष, पाराशर (गैंडा), रासभ (गधा), सियार, विडाल (बिलाव), शुनक, (कुत्ता=श्वान), कोलशुनक (शिकारी कुत्ता), कोकन्तिकी (लोमड़ी), शशक (खरगोश), चीता (चित्रक) और चिल्ललक (वन्य हिस्र पश), ये और इसी प्रकार के जो (जितने) भी अन्य जीव हैं, क्या वे सब एकवचन हैं ? [846 उ.] हाँ, गौतम ! मनुष्य से लेकर चिल्ललक तक तथा ये और अन्य जितने भी इसी प्रकार के प्राणी हैं, वे सब एकवचन हैं। 850 ग्रह भंते ! मणुस्सा जाव चिल्ललगा जे यावऽण्णे तहप्पगागा सव्वा सा बहुवयू ? हंता गोयमा ! मणुस्सा जाव चिल्ललगा सव्वा सा बहुवयू / [850 प्र.] भगवन् ! मनुष्यों (बहुत-से मनुष्य) से लेकर बहुत चिल्ललक तथा ये और इसी प्रकार के जो अन्य प्राणी हैं, वे सब क्या बहुवचन हैं ? [850 उ. हाँ, गौतम ! मनुष्यों (बहुत से मनुष्य) से लेकर बहुत चिल्ललक तक तथा अन्य इसी प्रकार के प्राणी, ये सब बहुवचन हैं / 851. अह भंते ! मणुस्सी महिसी वलवा हस्थिणिया सोही बग्घी वगी दीविया अच्छी तरच्छी परस्सरी सियाली विराली सुणिया कोलसुणिया कोषकतिया ससिया चित्तिया चिल्ललिया जा यावऽण्णा तहप्पगारा सव्वा सा इस्थिवयू ? हंता गोयमा ! मणुस्सी जाव चिल्ललिया जा यावऽण्णा तहप्पगारा सव्वा सा इस्थिवयू / [851 प्र.] भगवन् ! मानुषी (स्त्री), महिषी (भैस), वडवा (घोड़ी), हस्तिनी (हथिनी), सिंही (सिंहनी), व्याघ्री, वृकी (भेड़िनी), द्वीपिनी, रीछनी, तरक्षी, पराशरा (गैंडी), रासभी (गधी), शृगाली (सियारनी), बिल्ली, कुत्ती (कुतिया), शिकारी कुत्ती, कोकन्तिका (लोमड़ी), शशकी (खरगोशनी), चित्रकी (चित्ती), चिल्ललिका, ये और अन्य इसी प्रकार के (स्त्रीजाति विशिष्ट) जो भी (जीव) हैं, क्या वे सब स्त्रीवचन हैं ? [851 उ.] हाँ, गौतम ! मानुषी से (लेकर) यावत् चिल्ललिका, ये और अन्य इसी प्रकार के जो भी (जीव) हैं, वे सब स्त्रीवचन हैं। 852. अह भंते ! मणुस्से जाव चिल्ललए जे यावऽन्ने तहापगारा सव्वा सा पुमवयू ? हता गोयमा ! मणुस्से महिसे पासे हत्थी सोहे वग्घे वगे दीविए अच्छे तरच्छे परस्सरे सियाले विराले सुणए कोलसुणए कोक्कतिए ससए चित्तए चिल्ललए जे यावऽण्णे तहप्पगारा सन्वा सा पुमक्यू / [852 प्र.] भगवन् ! मनुष्य से लेकर यावत् चिल्ललक तक तथा जो अन्य भी इसी प्रकार के प्राणी (नर जीव) हैं, क्या वे सब पुरुषवचन (पुल्लिग) हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org