Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ ग्यारहवाँ भाषापद [855 उ.] हाँ, गौतम ! पृथ्वी, यह (जो) स्त्री-आज्ञापनी (भाषा) है, अप, यह (जा) पुरुष-पाज्ञापनी (भाषा) है और धान्य, यह (जो) नपुंसक-आज्ञापनी (भाषा) है, यह भाषा प्रज्ञापनी है, यह भाषा मृषा नहीं है। 856. अह भंते ! पुढवीति इस्थिपण्णवणो प्राउ त्ति पुमपण्णवणो धणे ति गपुसगपण्णवणी पाराहणी णं एसा भासा ? ण एसा भासा मोसा ?' हंता गोयमा ! पुढवोति इस्थिपण्णवणी प्राउ ति पुमपण्णवणी घण्णे त्ति जपुसगपण्णवणी पाराहणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा / [856 प्र.] भगवन् ! पृथ्वी, यह (जो) स्त्री-प्रज्ञापनी (भाषा) है, अप्, यह (जो) पुरुषप्रज्ञापनी (भाषा) है, और धान्य, यह (जो) नपुसक-प्रज्ञापनी (भाषा) है, क्या यह भाषा आराधनी है ? क्या यह भाषा मृषा नहीं है ? [856 उ.] हाँ, गौतम ! पृथ्वी, यह (जो) स्त्री-प्रज्ञापनी (भाषा) है, अप, यह (जो) पुरुषप्रज्ञापनी (भाषा) है और धान्य, यह (जो) नपुंसक-प्रज्ञापनी (भाषा) है, यह भाषा आराधनी है। यह भाषा मृषा नहीं है। 857. इच्चे भंते ! इस्थिवयणं वा पुमवयणं वा गपुसगवयणं वा वयमाणे पण्णवणी णं एसा भासा ? | एसा भासा मोसा ? हंता गोयमा ! इस्थिवयणं वा पुमवयणं वा पसगवयणं वा वयमाणे पण्णवणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा / [857 प्र.] भगवन् ! इसी प्रकार स्त्रीवचन या पुरुषवचन अथवा नपुसकवचन बोलते हुए (व्यक्ति की) क्या यह भाषा प्रज्ञापनी है ? क्या यह भाषा मृषा नहीं है ? [857 उ.] हाँ, गौतम ! स्त्रीवचन, पुरुषवचन, अथवा नपुसकवचन बोलते हुए (व्यक्ति की) यह भाषा प्रज्ञापनी है, यह भाषा मृषा नहीं है / विवेचन–एकवचनादि तथा स्त्रीवचनादि विशिष्ट भाषा की प्रजापनिता का निर्णय-- प्रस्तुत नौ सूत्रों (सू. 849 से 857 तक) में प्रज्ञापनी भाषा के विषय में वचन, लिंग, आज्ञापन, प्रज्ञापन आदि की अपेक्षा से निर्णयात्मक विचार प्रस्तुत किया गया है। प्रस्तुत नौ सूत्रोक्त प्रश्नोत्तरों की व्याख्या-(१) सू. 849 में प्ररूपित प्रश्न का आशय यह है कि मनुष्य से चिल्ललक तक के तथा इसी प्रकार के अन्य शब्द एकत्ववाचक होने से क्या एकवचन हैं ? अर्थात्---इस प्रकार की भाषा क्या एकत्वप्रतिपादिका भाषा है ? तात्पर्य यह है कि-वस्तु धर्ममिसमुदायात्मक होती है, और प्रत्येक वस्तु में अनन्त धर्म पाए जाते हैं / 'मनुष्य' कहने से धर्म: धमिसमुदायात्मक सकल (अखण्ड), परिपूर्ण वस्तु की प्रतीति होती है, ऐसा ही व्यवहार भी देखा जाता है। किन्तु एक पदार्थ के लिए एकवचन का और बहुत-से पदार्थों के लिए बहुवचन का प्रयोग होता है। इस दृष्टि से यहाँ 'मनुष्य', इस प्रकार का एकवचन का प्रयोग किया गया है, जबकि 1. ग्रन्थाग्रम 4000 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org