________________ [प्रज्ञापनासूत्र एकत्वविशिष्ट मनुष्य से मनुष्यगत अनेक धर्मों का बोध होता है। लोक में तो एकवचन के द्वारा व्यवहार होता है। ऐसी स्थिति में क्या मनुष्य आदि के लिए एकत्वप्रतिपादिका भाषा के रूप में एकवचनान्त प्रयोग समीचीन है ? भगवान् का उत्तर है-मनुष्य से लेकर चिल्ललक तक तथा इसी प्रकार के अन्य जितने भी शब्द हैं, वह सब एकत्ववाचक भाषा है। तात्पर्य यह है कि शब्दों की प्रवृत्ति विवक्षा के अधीन है और विवक्षा वक्ता के विभिन्न प्रयोजनों के अनुसार कभी और कहीं एक प्रकार की होती है, तो कभी और कहीं उससे भिन्न प्रकार को, अत: विवक्षा अनियत होती है। उदाहरणार्थ-किसी एक ही व्यक्ति को उसका पुत्र पिता के रूप में विवक्षित करता है, तब वह व्यक्ति पिता कहलाता है तथा वहीं पुत्र उसे अपने अध्यापक के रूप में विवक्षित करता है, तब वही व्यक्ति 'उपाध्याय' कहलाने लगता है / इसी प्रकार यहाँ भी जब धर्मों को गौण करके धर्मी की प्रधानरूप से विवक्षा की जाती है तब धर्मी एक होने से एकवचन का ही प्रयोग होता है। उस समय समस्त धर्म, धर्मी के अन्तर्गत हो जाते हैं। इस कारण सम्पूर्ण वस्तु की प्रतीति हो जाती है। किन्तु जब धर्मी (मनुष्य) की गौणरूप में विवक्षा की जाती है और धर्मों की प्रधानरूप से विवक्षा की जाती है, तब धर्म बहुत होने के कारण धर्मी एक होने पर भी बहुवचन का प्रयोग होता है। निष्कर्ष यह है कि जब धर्मी से धर्मों को अभिन्न मान कर एकत्व की विवक्षा की जाती है तब एकवचन का प्रयोग होता है और जब धर्मी को गौण करके अनेक धर्मों की प्रधानता से विवक्षा की जाती है तब बहुवचन का प्रयोग होता है। यहाँ भी अनन्तधर्मात्मक वस्तु मनुष्य आदि भी धर्मी के एक होने से एकवचन द्वारा प्रतिपादित की जा सकती है। इसलिए यह भाषा एकत्वप्रतिपादिका है / (2) सूत्र 850 में प्ररूपित प्रश्न का आशय यह है कि मनुष्या:' से 'चिल्ललका:' तक तथा इसी प्रकार के अन्य बहुवचनान्त जो शब्द हैं, वह सब क्या बहुत्वप्रतिपादक वाणी है ? इसका तात्पर्य यह है कि मनुष्य आदि पूर्वोक्त शब्द जातिवाचक हैं और जाति का अर्थ है--सामान्य / सामान्य के लिए कहा जाता है कि वह एक होता है तथा नित्य, निरवयव, अक्रिय और सर्वव्यापी होता है। ऐसी स्थिति में ये जातिवाचक शब्द बहुवचनान्त कैसे हो सकते हैं ? जबकि इन शब्दों का प्रयोग बहुवचन में देखा गया है / यही इस पृच्छा का कारण है। भगवान् के उत्तर का आशय यह है कि मनुष्या:' से लेकर 'चिल्ललकाः' तक जो बहुवचनान्त शब्द हैं, वह सब बहुत्वप्रतिपादिका वाणी है। इसका कारण यह है कि यद्यपि पूर्वोक्त 'मनुष्या:' आदि शब्द जातिवाचक हैं, तथापि जाति सदृश परिणामरूप होती है और सदृश परिणाम विसदृशपरिणाम का अविनाभावी होता है; अर्थात् सामान्यपरिणाम और असमानपरिणाम या सदृशता और विसदृशता साथ-साथ ही रहते हैं और दोनों में कथंचित् अभेद भी है। अतः जब असमानपरिणाम से युक्त समानपरिणाम की प्रधानता से विवक्षा की जाती है और असमानपरिणाम प्रत्येक व्यक्ति (विशेष) में भिन्न-भिन्न होता है; अतएव जब उसका कथन किया जाता है, तब बहुवचन-प्रयोग संगत ही है, जैसे-'घटाः' इत्यादि बहुवचन के समान / जब केवल एक ही समानपरिणाम की प्रधानता से विवक्षा की जाती है, और असमानपरिणाम को गौण कर दिया जाता है, तब सर्वत्र समानपरिणाम एक ही होता है, अतएव उसके प्रतिपादन करने में एकवचन का प्रयोग भी संगत है। जैसे-'सर्व घट पृथुबुध्नोदराकार (मोटा और गोल पेट के आकार का) होता है।' यहाँ 'मनुष्या:' इत्यादि शब्दप्रयोगों में असमानपरिणाम से युक्त समानपरिणाम की ही प्रधानता से विवक्षा की गई है और असमानपरिणाम अनेक होता है। इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org