________________ 70] [प्रज्ञापनासूत्र अविगतों (जीवितों) के साथ विगतों (मृतों) को संख्या की पूर्ति हेतु मिला कर कहना / जैसे-किसी ग्राम या नगर में कम या अधिक वृद्धों के मरने पर भी ऐसे कहना कि आज इस ग्राम या नगर में बारह बूढ़े मर गए। यह भाषा विगतमिश्रिता सत्यामृषा है। (3) उत्पन्न विगतमिश्रिता-उत्पन्नों (जन्मे हुओं) और मृतकों (मरे हुओं) की संख्या नियत होने पर भी उसमें गड़बड़ करके कहना। (4) जीवमिश्रिता--शंख आदि की ऐसी राशि हो, जिसमें बहुत-से जीवित हों और कुछ मृत हों, उस एक राशि को देख कर कहना कि कितनी बड़ी जीवराशि है, यह जीवमिश्रिता सत्यामृषा भाषा है, क्योंकि यह भाषा जीवित शंखों की अपेक्षा सत्य है और मृत शंखों की अपेक्षा से मृषा। (5) अजीवमिश्रिता-बहुत-से मृतकों और थोड़े-से जीवित शंखों को एक राशि को देखकर कहना कि 'कितनी बड़ी मृतकों की राशि है', इस प्रकार की भाषा अजीवमिश्रिता सत्यामृषा भाषा कहलाती है, क्योंकि यह भाषा भी मृतकों की अपेक्षा से सत्य और जीवितों की अपेक्षा मृषा है। (6) जीवाजोवमिश्रिता-उसी पूर्वोक्त राशि को देखकर, संख्या में विसंवाद होने पर भी नियतरूप से निश्चित कह देना कि इसमें इतने मृतक हैं, इतने जीवित हैं / यहाँ जीवों और अजीवों को विद्यमानता सत्य है, किन्तु उनकी संख्या निश्चित कहना मृषा है। अतएव यह जीवाजीवमिश्रिता सत्यामृषा भाषा है। (7) अनन्तमिश्रिता--मूली, गाजर आदि अनन्तकाय कहलाते हैं. उनके साथ कुछ प्रत्येकवनस्पतिकायिक भी मिले हुए हैं, उन्हें देख कर कहना कि 'ये सब अनन्तकायिक हैं', यह भाषा अनन्तमिश्रिता सत्यामृषा है / (8) प्रत्येकमिश्रिता-प्रत्येक वनस्पतिकाय का संघात अनन्तकायिक के साथ ढेर करके रखा हो, उसे देखकर कहना कि 'यह सब प्रत्येकवनस्पतिकायिक है'; इस प्रकार की भाषा प्रत्येक मिश्रिता सत्यामृषा है। (6) प्रद्धामिश्रिता--प्रद्धा कहते हैं--काल को। यहाँ प्रसंग प्रद्धा से दिन या रात्रि अर्थ ग्रहण करना चाहिए, जिसमें दोनों का मिश्रण करके कहा जाए / जैसे--अभी दिन विश्चमान है, फिर भी किसी से कहा--उठ, रात पड़ गई। अथवा अभी रात्रि शेष है, फिर भी कहना उठ, सूर्योदय हो गया / (10) प्रद्धाद्धामिश्रिता--अद्धाद्धा कहते हैं-दिन या रात्रि काल के एक देश (अंश) को। जिस भाषा के द्वारा उन कालांशों का मिश्रण करके बोला जाए। जैसे-~-अभी पहला पहर चल रहा है, फिर भी कोई व्यक्ति किसी को जल्दी करने की दृष्टि से कहे कि 'चल, मध्याह्न हो गया है', ऐसी भाषा प्रद्धाद्धामिश्रिता है। ___ बारह प्रकार की असत्यामषा भाषा की व्याख्या-(१) प्रामंत्रणी-सम्बोधनसूचक भाषा। जैसे-हे देवदत्त ! / (2) प्राज्ञापनी-जिसके द्वारा दूसरे को किसी प्रकार की आज्ञा दी जाए। जैसे---'तुम यह कार्य करो।' प्राज्ञापनी भाषा दूसरे को कार्य में प्रवृत्त करने वाली होती है। (3) याचनी-किसी वस्तु की याचना करने (मांगने) के लिए प्रयुक्त की जाने वाली भाषा / जैसेमुझे दीजिए। (4) पृच्छनी-किसी संदिग्ध या अनिश्चित वस्तु के विषय में किसी विशिष्ट ज्ञाता से जिज्ञासावश पूछना कि 'इस शब्द का अर्थ क्या है ?' (5) प्रज्ञापनो-विनीत शिष्यादि जनों के लिए उपदेशरूप भाषा / जैसे-जो प्राणिहिंसा से निवृत्त होते हैं, वे दूसरे जन्म में दीर्घायु होते हैं।' (6) प्रत्याख्यानी--जिस भाषा के द्वारा अमुक वस्तु का प्रत्याख्यान कराया जाए या प्रकट किया जाए। जैसे--आज तुम्हारे एक प्रहर तक आहार करने का प्रत्याख्यान है। अथवा किसी के द्वारा याचना करने पर कहना कि 'मैं यह वस्तु तुम्हें नहीं दे सकता।' (7) इच्छानुलोमा-जो भाषा इच्छा 1. 'पाणिवहाउ नियत्ता हवंति दीहाउया प्ररोगा य / एमाई पण्णत्ता पण्णवणी वीयरागेहिं / / -प्रशापना. म. वृत्ति. पृ. 259 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org