Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 66 [प्रज्ञापनासूत्र भाषा का माषणकाल-जीव दो समयों में भाषा बोलता है, क्योंकि वह एक समय में भाषा योग्य पुद्गलों को ग्रहण करता है और दूसरे समय में उन्हें भाषारूप में परिणत करके छोड़ता (निकालता) है। भाषा के प्रकार-इससे पूर्व भाषा के चार प्रकार स्वरूपसहित बताए जा चुके हैं-सत्या, मृषा (असत्या), सत्यामृषा (मिश्र) और असत्यामृषा (व्यवहार) भाषा / / अनुमत भाषाएँ-भगवान द्वारा दो प्रकार की भाषा बोलने की अनुमति साधुवर्ग को दो गई है--सत्याभाषा और असत्यामृषा (व्यवहार) भाषा / इसका फलितार्थ यह हुआ कि भगवान् ने मिश्र (सत्यामृषा) भाषा और मृषा (असत्य) भाषा बोलने की अनुज्ञा नहीं दी है, क्योंकि ये दोनों भाषाएँ यथार्थ वस्तुस्वरूप का प्रतिपादन नहीं करतीं, अतएव ये मोक्ष की विरोधिनी हैं।' पर्याप्तिका-अपर्याप्तिका भाषा और इनके भेद-प्रभेदों को प्ररूपणा 860. कतिविहा णं भंते ! भासा पण्णत्ता ? गोयमा! दुविहा मासा पण्णत्ता / तं जहा-पज्जत्तिया य अपज्जत्तिया य / [860 प्र.) भगवन् ! भाषा कितने प्रकार की कही गई है ? [860 उ.] गौतम ! भाषा दो प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार–पर्याप्तिका और अपर्याप्तिका। 861. पज्जत्तिया णं भंते ! भासा कतिविहा पणत्ता? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता / तं जहा-सच्चा य मोसा य / [861 प्र.] भगवन् ! पर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की कही गई है ? 861 उ.] गौतम ! पर्याप्तिका भाषा दो प्रकार की कही गई है / वह इस प्रकार-सत्या और मृषा। 862. सच्चा णं भंते ! भासा पज्जत्तिया कतिविहा पण्णता? गोयमा ! दसविहा पण्णत्ता / तं जहा-जणवयसच्चा 1 सम्मतसच्चा 2 ठवणासच्चा 3 णामसच्चा 4 रूबसच्चा 5 पडुच्चसच्चा 6 ववहारसच्चा 7 भावसच्चा 8 जोगसच्चा 6 ओवम्मसच्चा 10 // जणवय 1 सम्मत 2 ठवणा 3 णामे 4 रूवे 5 पडच्चसच्चे 6 य / ववहार 7 भाव 8 जोगे 9 दसमे प्रोवम्मसच्चे 10 य // 14 // [862 प्र.] भगवन् ! सत्या-पर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की कही गई है ? [862 उ.] गौतम ! दस प्रकार की कही गई है / वह इस प्रकार-(१) जनपदसत्या, 1. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक 256, 257 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org