________________ 36 [ प्रज्ञापनासून 808. [1] रतिए णं भंते ! गतिचरिमेणं किं चरिमे प्रचरि मे ? गोयमा! सिय चरिमे सिय अचरिमे / [808-1 प्र.] भगवन् ! (एक) नैरयिक गतिचरम की अपेक्षा से चरम है या अचरम है ? [808-1 उ.] गौतम ! (वह गतिचरम की दृष्टि से) कथंचित् चरम है और कथंचित् अचरम है। [2] एवं पिरंतरं जाव वेमाणिए / [808-2] इसी प्रकार (एक असुरकुमार से लेकर) लगातार (एक) वैमानिक देव तक (जानना चाहिए 1) 806. [1] रतिया गं भंते ! गतिचरिमेणं कि चरिमा अचरिमा ? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि। [809-1 प्र.] भगवन् ! (अनेक) नैरयिक गतिचरम से चरम हैं अथवा अचरम हैं ? [806-1 उ.] गौतम ! (अनेक नैरयिक गतिचरम की अपेक्षा से) चरम भी हैं और अचरम भी हैं। [2] एवं णिरंतरं जाव वेमाणिया / [809-2] इसी प्रकार लगातार (अनेक) वैमानिक देवों तक (कहना चाहिए / ) 810. [1] णेरइए णं भंते ! ठितीचरिमेणं कि चरिमे प्रचरिमे ? गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिमे। [810-1 प्र.) भगवन् ! (एक) नै रयिक स्थितिचरम की अपेक्षा से चरम है या अचरम है ? [810-1 उ.] गौतम ! (एक नैरयिक स्थितिचरम की दृष्टि से) कथंचित चरम है, कथंचित अचरम है। [2] एवं पिरंतरं जाव बेमाणिए। [810-2j लगातार (एक) वैमानिक देव-पर्यन्त इसी प्रकार (कथन करना चाहिए।) 811. [1] रतिया णं भंते ! ठितीचरिमेणं कि चरिमा प्रचरिमा ? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि / [811-1 प्र.] भगवन् ! (अनेक) नैरयिक स्थितिचरम की अपेक्षा से चरम हैं अथवा अचरम हैं ? [811-1 उ.] गौतम ! (स्थितिचरम की दृष्टि से अनेक नैरयिक) चरम भी हैं और अचरम भी हैं। [2] एवं निरंतरं जाव वेमाणिया। [811-2] लगातार (अनेक) वैमानिक देवों तक इसी प्रकार (प्ररूपणा करनी चाहिए / ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org