________________ 34] [ प्रज्ञापनासूत्र [806 उ.] गौतम ! जैसे (सू. 777 में) रत्नप्रभापृथ्वी के चरम, अचरम आदि के विषय में अल्पबहुत्व कहा गया है, उसी प्रकार अनन्तप्रदेशी एवं असंख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान के चरम, अचरम आदि के अल्पबहुत्व के विषय में समझ लेना चाहिए। विशेषता यह है कि संक्रम में अनन्तगुणा है। इसी प्रकार (वृत्तसंस्थान से लेकर) यावत् प्रायतसंस्थान (के चरमादि के अल्पबहुत्व के विषय में समझ लेना चाहिए। _ विवेचन-विशिष्ट परिमण्डलादि के चरमादि के अल्पबहत्व की प्ररूपणा-प्रस्तुत सोलह सूत्रों (सू. 791 से 806 तक) में परिमण्डलादि संस्थानों के संख्यातप्रदेशिकादि तथा संख्यातप्रदेशावगाढ़ादि विविध रूपों का प्रतिपादन करके उनके अचरम-चरमादि के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा की संख्यातप्रदेशी आदि संस्थानों के अवगाहन की प्ररूपणा-संख्यात प्रदेशी परिमण्डल आदि संस्थान संख्यातप्रदेशों में ही अवगाढ़ होता है, असंख्यातप्रदेशों में या अनन्तप्रदेशों में प्रवगाढ़ नहीं होता, क्योंकि संख्यातप्रदेशी परिमण्डल आदि संस्थानों के प्रदेश संख्यात ही होते हैं / असंख्यातप्रदेशी परिमण्डल प्रादि संस्थानों का कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात प्रदेशों में अवगाह होता है, इसमें कोई विरोध नहीं है, किन्तु उसका अनन्त प्रदेशों में अवगाह होना विरुद्ध है। इसी प्रकार अनन्तप्रदेशी परिमण्डलादि संस्थानों का अवगाह भी कदाचित् संख्यातप्रदेशों में और कदाचित् असंख्यातप्रदेशों में होता है, किन्तु अनन्तप्रदेशों में नहीं; क्योंकि अनन्तप्रदेशी परिमण्डलादि संस्थान का अनन्त आकाशप्रदेशों में अवगाह नहीं हो सकता। सैद्धान्तिक दृष्टि से समग्र लोकाकाश के प्रदेश असंख्यात ही हैं, अनन्त नहीं और लोकाकाश के बाहर पुद्गलों की गति या स्थिति हो नहीं सकती। अतः अनन्तप्रदेशी परिमण्डलादि संस्थान या तो संख्यात प्रदेशों में अवगाहन करता है या असंख्यातप्रदेशों में / अनन्तप्रदेशों में उसका अवगाह सम्भव नहीं है।' पंचविशेषणविशिष्ट परिमण्डलादि संस्थानों का चरमादि की दृष्टि से स्वरूपविचार--प्रस्तुत 5 सूत्रों (797 से 801 तक) में निम्नोक्त पांच विशेषणों से युक्त परिमण्डलसंस्थानादि का चरमादि 6 की दृष्टि से विचार किया गया है 1. संख्यातप्रदेशी संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलादि संस्थान 2. असंख्यातप्रदेशी संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलादि संस्थान 3. असंख्यातप्रदेशी असंख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलादि संस्थान 4. अनन्तप्रदेशी संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलादि संस्थान 5. अनन्तप्रदेशी असंख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलादि संस्थान चरमादि 6 पद वे ही हैं, जिनको लेकर रत्नप्रभापृथ्वी के चरमादि स्वरूप का विचार किया गया था और उपर्युक्त विशेषणविशिष्ट सभी परिमण्डलादि संस्थानों के चरमादिस्वरूप विषयक प्रश्न का उत्तर भी वही है, जो रत्नप्रभा के चरमादिविषयक प्रश्नों का उत्तर है। वह है---ये चरम, अचरम, अनेक चरम, अनेक अचरम तथा चरमान्तप्रदेश या अचरमान्तप्रदेश नहीं हैं; किन्तु रत्नप्रभा 1. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक 244 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org