________________ 38) [प्रज्ञापनासून 816. [1] रइए णं भंते ! प्राणापाणुचरिमेणं कि चरिमे अचरिमे ? गोयमा ! सिय चरिमे सिय प्रचरिमे / [816-1 प्र. भगवन् ! (एक) नैरयिक आनापान (श्वासोच्छ्वास)-चरम की अपेक्षा से चरम है या अचरम? [816-1 उ.] गौतम ! (प्रानापानचरम की दृष्टि से एक नैरयिक कथंचित् चरम है, कथंचित् अचरम है। [2] एवं णिरंतरं जाव वेमाणिए / [816-2] इसी प्रकार लगातार (एक) वैमानिक पर्यन्त (प्ररूपणा करनी चाहिए।) 817. [1] गैरइया णं भंते ! आणापाणुचरिमेणं कि चरिमा प्रचारमा ? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि / [817-1 प्र.] भगवन् ! (अनेक) नैरयिक आनापानचरम की अपेक्षा से चरम हैं या अचरम ? [817-1 उ.] गौतम ! (मानापानचरम को दृष्टि से) चरम भी हैं और अचरम भी हैं। [2] एवं निरंतरं जाव वेमाणिया। [817-2] इसी प्रकार अविच्छिन्न रूप से (अनेक) वैमानिक देवों तक (प्ररूपणा करनी चाहिए / ) 818. [1] रइए णं भंते ! आहारचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे ? गोयमा ! सिय चरिमे सिय प्रचरिमे / [818-1 प्र.] भगवन् ! आहारचरम की अपेक्षा से (एक) नैरयिक चरम है अथवा अचरम ? [818-1 उ.] गौतम ! (आहारचरम की दृष्टि से एक नैरयिक) कथंचित् चरम है और कथंचित् अचरम है। [2] एवं निरंतरं जाव वेमाणिए / [818-2] लगातार (एक) वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार (कहना चाहिए / ) 819. [1] नेरइया णं भंते ! पाहारचरिमेणं कि चरिमा अचरिमा ? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि / [819-1 प्र.] भगवन् ! (अनेक) नैरयिक आहारचरम की दृष्टि से चरम हैं अथवा अचरम हैं ? [816-1 उ.] गौतम ! (अनेक नैरयिक आहारचरम की दृष्टि से) चरम भी हैं और अचरम भी हैं। [2] एवं निरंतरं जाव वेमाणिया / [816-2] वैमानिक देवों तक निरन्तर इसी प्रकार (प्ररूपणा करनी चाहिए / ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org