________________ एक्कारसमं भासापयं ग्यारहवाँ भाषापद प्राथमिक * यह प्रज्ञापनासूत्र का ग्यारहवाँ भाषापद' है / * भाषापर्याप्त जीवों को अपने मनोभाव प्रकट करने के लिए भाषा एक मुख्य माध्यम है, इसके विना विचारों का आदान-प्रदान, शास्त्रीय एवं व्यावहारिक अध्ययन. तथा ज्ञानोपार्जन में कठिनता होती है। मन के बाद 'वचन' बहुत बड़ा साधन है जीव के लिए। इससे कर्मबन्धन और कर्मक्षय दोनों ही हो सकते हैं, आराधना भी हो सकती है, विराधना भी। इस हेतु से शास्त्रकार ने भाषापद की रचना की है। प्रस्तुत भाषापद में विशेषरूप से यह विचार किया गया है कि भाषा क्या है ? वह अवधारिणीअवबोधबीज है या नहीं ? अवधारणी है तो ऐसी अवधारणी भाषा सत्यादि चार प्रकार की भाषाओं में से कौन-सी है ? यदि चारों प्रकार की है, तो कैसे है ? विरोधनी भाषा कौन-सी है ? भाषा का मूल स्रोत क्या है ? यदि जीव है तो क्यों ? भाषा की उत्पत्ति कहाँ से और कैसे होती है ? भाषा की प्राकृति कैसी है ? भाषा का उद्भव और अन्त किस योग से व कहाँ होता है ? भाषाद्रव्य में पुद्गलों का ग्रहण और निर्गमन किस-किस योग से होता है ? भाषा का भाषणकाल कितना है ? भाषा मुख्यतया कितने प्रकार की है ? प्रस्तुत चार प्रकार की भाषाओं में भगवान द्वारा अनुमत भाषाएँ कितनी हैं ? तथा भाषाओं में प्रतिनियत रूप से समझी जा सके, ऐसी पर्याप्तिका कौन-कौन-सी हैं तथा इससे विपरीत अपर्याप्तिका कौन कौन-सी हैं ? * फिर पर्याप्तिका के सत्या और मषा इन दो भेदों के प्रत्येक के जनपदसत्यादि, तथा क्रोधनिःसृतादि रूप से क्रमशः दस-दस प्रकार बताए गए हैं। तदनन्तर अपर्याप्तिका के सत्यामृषा, और असत्यमृषा ये दो भेद बताकर इनके क्रमशः दस और बारह भेद बताए गये हैं / तत्पश्चात् समस्त जीवों में कौन-कौन भाषक हैं, कौन अभाषक ? तथा दैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक पूर्वोक्त चार भाषाओं में कौन-कौन-सी भाषा बोलते हैं ? इसका स्पष्टीकरण किया गया है। * प्रस्तुत पद में बीच में और अन्त में व्यक्ति और जाति की दृष्टि से स्त्री-पुरुषन्नपुसक वचन, स्त्री-पुरुष-नपुसक-प्राज्ञापनी, स्त्री-पुरुष-नपुसक प्रज्ञापनी भाषा, प्रज्ञापनी-सत्या है या अप्रज्ञापनी (मृषा) है ? विशिष्ट संज्ञानवान् के अतिरिक्त नवजात अबोध शिशुओं या अपरिपक्कावस्था में उष्ट्रादि पशुओं द्वारा बोली जाने वाली भाषा क्या सत्य है ? तत्पश्चात् पुनः पुरुषवाचक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org