________________ प्रज्ञापनासूब 824. [1] गैरइए णं भंते ! गंधचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे ? गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिमे। [824-1 प्र.] भगवन् ! (एक) नैरयिक गन्धचरम की अपेक्षा से चरम है अथवा अचरम है? [824-1 उ.] गौतम ! (एक नैरयिक गन्धचरम की दृष्टि से) कथंचित् चरम है और कथंचित् अचरम है। [2] एवं निरंतरं जाव वेमाणिए / [824-2] लगातार (एक) वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार (प्ररूपणा करनी चाहिए।) 825. [1] रइया णं भंते ! गंधचरिमेणं किं चरिमा प्रचरिमा? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि। [825-1 प्र.] भगवन् ! गन्धचरम की अपेक्षा से (अनेक) नैरयिक चरम हैं अथवा अचरम हैं ? [825-1 उ.] गौतम ! (अनेक नैरयिक गन्धचरम की अपेक्षा से) चरम भी हैं और अचरम [2] एवं निरंतरं जाव वेमाणिया। [825-2] इसी प्रकार अविच्छिन्नरूप से वैमानिक देवों तक (प्ररूपणा करनी चाहिए / ) 826. [1] जेरइए णं भंते ! रसचरिमेणं कि चरिमे प्रचरिमे ? गोयमा ! सिय चरिमे सिय प्रचरिमे। [826-1 प्र.] भगवन् ! (एक) नरयिक रसचरम की अपेक्षा से चरम है या अचरम है ? [826-1 उ.] गौतम ! (एक नैरयिक रसचरम की अपेक्षा से) कथंचित् चरम है और कथंचित् अचरम है। [2] एवं निरंतरं जाब वेमाणिए / [826-2] निरन्तर (एक) वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार (प्रतिपादन करना चाहिए / ) 827 [1] नेरइया णं भंते ! रसचरिमेणं कि चरिमा अचरिमा ? गोयमा ! चरिमा वि प्रचारमा वि। [827-1 प्र. भगवन् ! (अनेक) नरयिक रसचरम की अपेक्षा से चरम हैं अथवा अचरम ? [827.1 उ.] गौतम ! (वे रसचरम की दृष्टि से) चरम भी हैं और अचरम भी हैं / [2] एवं निरंतरं जाव वेमाणिया। [827-2] इसी प्रकार लगातार वैमानिक देवों तक (कहना चाहिए।) 828. [1] मेरइए णं भंते ! फासचरिमेगं कि चरिमे अचरिमे ? गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिमे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org