________________ बसवाँ चरमपद ] 820. [1] णेरइए णं भंते ! भावचरिमेणं कि चरिमे अचरिमे ? गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिमे / [820-1 प्र.] भगवन् ! (एक) नैरयिक भावचरम की अपेक्षा से चरम है अथवा अचरम ? [820-1 उ.] गौतम ! (एक नैरयिक भावचरम की अपेक्षा से) कथंचित् चरम और कथञ्चित् अचरम है। . [2] एवं निरंतरं जाव वेमाणिए / [820-2] इसी प्रकार लगातार (एक) वैमानिक पर्यन्त (कथन करना चाहिए।) 821. [1] णेरइया णं भंते ! भावचरिमेणं कि चरिमा अचरिमा ? गोयमा! चरिमा वि अचरिमा वि। [821-1 प्र.] भगवन् (अनेक) नैरयिक भावचरम की अपेक्षा से चरम हैं या अचरम हैं ? [821-1 उ.] गौतम ! (अनेक नैरयिक भावचरम की अपेक्षा से) चरम भी हैं और अचरम भी हैं। [2] एवं निरंतरं जाव वेमाणिया। [821-2] इसी प्रकार लगातार (अनेक) वैमानिकों तक (प्रतिपादन करना चाहिए / ) 822. [1] णेरइए णं भंते ! वण्णचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे ? गोयमा! सिय चरिमे सिय अचरिमे। [822-1 प्र.] भगवन् ! (एक) नैरयिक वर्णचरम की अपेक्षा से चरम है अथवा अचरम है ? [822-1 उ.] गौतम ! (एक नैरयिक वर्णचरम की दृष्टि से) कथंचित् चरम है और कथंचित् अचरम है। [2] एवं निरंतरं जाव वेमाणिए / [822-2] इसी प्रकार निरन्तर (एक) वैमानिक पर्यन्त (कहना चाहिए / ) 823. [1] रइया णं भंते ! वण्णचरिमेणं कि चरिमा अचरिमा ? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि / [823-1 प्र.] भगवन् ! (अनेक) नैरयिक वर्णचरम की अपेक्षा से चरम हैं या अचरम हैं ? [823-1 उ.] गौतम ! (अनेक नैरयिक वर्णचरम की अपेक्षा से) चरम भी हैं और अचरम भी हैं। [2] एवं निरंतरं जाव वेमाणिया / [823-2] इसी प्रकार लगातार (अनेक) वैमानिक देवों तक (कथन करना चाहिए / ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org