________________ दसवां चरमपद ] [ 29 [791 उ.] गौतम ! पांच संस्थान कहे गए हैं। वे इस प्रकार-१. परिमण्डल, 2. वृत्त 3. त्र्यस्र, 4. चतुरस्र और 5. पायत / 762. परिमंडला गं भंते ! संठाणा किं संखेज्जा प्रसंखेज्जा अणंता ? गोयमा ! णो संखेज्जा, नो प्रसंखेज्जा, अणंता / एवं जाव प्रायता / [762 प्र.] भगवन् ! परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं अथवा अनन्त हैं ? [762 उ.) गौतम ! (वे) संख्यात नहीं, असंख्यात नहीं, (किन्तु) अनन्त हैं। इसी प्रकार (वृत्त से लेकर) यावत् आयत (तक के विषय में समझना चाहिए / ) 763. परिमंडले णं भंते ! संठाणे कि संखेज्जपएसिए असंखेज्जपएसिए अणंतपएसिए ? गोयमा ! सिय संखेज्जपएसिए सिय असंखेज्जपदेसिए सिय अणंतपदेसिए / एवं जाव प्रायते / [763 प्र.] भगवन् ! परिमण्डलसंस्थान संख्यातप्रदेशी है, असंख्यातप्रदेशी है अथवा अनन्तप्रदेशी है ? [793 उ.] गौतम ! (वह) कदाचित् संख्यातप्रदेशी है, कदाचित् असंख्यातप्रदेशी है और कदाचित् अनन्तप्रदेशी है / इसी प्रकार (वृत्त से लेकर) यावत् आयत (तक के विषय में समझ लेना चाहिए।) 764. परिमंडले णं भंते ! संठाणे संखेज्जपदेसिए कि संखेज्जपदेसोगाढे असंखेज्जपएसोगाढे अगंतपएसोगाढे ? गोयमा ! संखेज्जपएसोगाढे, नो प्रसंखेज्जपएसोगाढे नो प्रणंतपएसोगाढे / एवं जाव प्रायते / [794 प्र.] भगवन् ! संख्यातप्रदेशी परिमण्डलसंस्थान संख्यातप्रदेशों में अवगाढ़ होता है, असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है अथवा अनन्त प्रदेशों में अवगाढ़ होता है ? [794 उ.] गौतम! (संख्यातप्रदेशो परिमण्डलसंस्थान) संख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है, किन्तु न तो असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है और न अनन्त प्रदेशों में अवगाढ़ / इसी प्रकार पायतसंस्थान तक (के विषय में कहना चाहिए / ) 765. परिमंडले णं भंते ! संठाणे असंखेज्जपदेसिए कि संखेज्जपदेसोगाढे असंखिज्जपदेसोगाढे अणंतपएसोगाढे ? गोयमा ! सिय संखेज्जपएसोगाढे सिय असंखेज्जपदेसोगाढे, णो अणंतपदेसोगाढे। एवं जाव प्रायते। 1795 प्र.] भगवन् ! असंख्यातप्रदेशी परिमण्डलसंस्थान संख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है, असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है अथवा अनन्त प्रदेशों में अवगाढ़ होता है ? [795 उ.] गौतम ! (असंख्यातप्रदेशी परिमण्डलसंस्थान) कदाचित संख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है और कदाचित असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है, किन्तु अनन्त प्रदेशों में अवगाढ़ नहीं होता। इसी प्रकार (वृत्त से लेकर) आयत संस्थान तक (के विषय में कहना चाहिए।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org