________________ 26] [ प्रज्ञापनासूत्र अचरम' कहलाता है। इसमें तेरहवां भंग- कथंचित् दो चरम एवं अवक्तव्य घटित होता है। वह 0 : इस प्रकार-जब कोई पंचप्रदेशी स्कन्ध इस प्रकार की स्थापना के अनुसार पंच. प्रदेशावगाढ़ होकर पांच आकाशप्रदेशों में अवगाहन करता है, तब उनमें से दो परमाणु ऊपर समश्रेणी में स्थित दो आकाशप्रदेशों में प्रवगाढ़ होते हैं, इसी प्रकार से दो परमाणु नीचे समश्रेणी में स्थित दो प्राकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होते हैं और एक परमाणु अन्त में बीचोंबीच स्थित होता है। ऐसी स्थिति में ऊपर के दो परमाणु द्विप्रदेशीगाढ़ द्वयणुकस्कन्ध की तरह 'चरम', तथैव नीचे के दो परमाण भी 'चरम' इस प्रकार चार चरम और एक परमाण, अकेले परमाणु के समान प्रवक्तव्य होने से समग्र पंचप्रदेशी स्कन्ध 'कथंचित् अनेक चरम और प्रवक्तव्य' कहा जा सकता है। पंचप्रदेशी स्कन्ध में चौबीसवाँ भंग-कथंचित् अनेक चरम, एक अचरम और अनेक अवक्तव्यरूप भी घटित होता है / वह इस प्रकार-जब पंचप्रदेशीस्कन्ध इस प्रकार की स्थापना के अनुसार पांच आकाशप्रदेशों में समश्रेणी और विश्रेणी में अवगाहन करके रहता है, तब उनमें से तीन परमाणु समश्रेणी में स्थित तीन आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होते हैं और दो परमाण विश्रेणी में स्थित दो आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होते हैं। ऐसी स्थिति में आदि-अन्तप्रदेशवर्ती दो परमाणु तो चरम कहलाते हैं, मध्यवर्ती परमाणु 'अचरम' कहलाता है तथा विश्रेणी में स्थित दो अकेले-अकेले परमाणु दो अवक्तव्य कहलाते हैं। इस प्रकार इनका समूहरूप पंचप्रदेशीस्कर चरम, एक अचरम, दो प्रवक्तव्य रूप कहा जा सकता है। इसी प्रकार 25 वाँ भंग-कथंचित् अनेक चरम, अनेक अचरम और एक प्रवक्तव्य भी घटित हो सकता है / वह इस प्रकार-जब पंचप्रदेशीस्कन्ध पांच आकाशप्रदेशों में , - इस प्रकार की स्थापना के अनुसार समश्रेणी और विश्रेणी में अवगाहन करके रहता है, तब चार परमाणु चार आकाशप्रदेशों में समश्रेणी में स्थित होते हैं और एक परमाणु विश्रेणीस्थ होकर रहता है। ऐसी स्थिति में उक्त चार प्रकाशप्रदेशों में से दो आदि-अन्तप्रदेशवर्ती 'चरम' तथा दो मध्यवर्ती 'अचरम' कहलाते हैं और एक जो अकेला परमाणु विश्रेणीस्थ है, वह अवक्तव्य है। इस प्रकार समग्र पंच प्रदेशीस्कन्ध को दो चरम, दो दो चरम और एक प्रवक्तव्यरूप कहा जा सकता है। यों पहला, तीसरा, सातवां, नौवाँ, दसवाँ, ग्यारहवाँ, बारहवाँ, तेरहवाँ, तेईसवाँ, चौवीसवाँ और पच्चीसवाँ, ये 11 भंग पंचप्रदेशीस्कन्ध में होते हैं, शेष 15 भंग इसमें नहीं होते। षट्प्रदेशीस्कन्ध में पन्द्रह भंग- इसमें 11 भंग तो पंचप्रदेशीस्कन्ध में उक्त हैं, वे पूर्वयुक्ति के अनुसार समझ लेने चाहिए। शेष चार भंग इस प्रकार हैं--पाठवाँ, चौदहवां, उन्नीसवाँ और छव्वीसवाँ भंग / आठवाँ भंग है-एक चरम और दो (अनेक) अचरमरूप / वह इस प्रकार घटित होता है जब कोई षट्प्रदेशीस्कन्ध छह आकाशप्रदेशों में इस प्रकार की स्थापना / के अनुसार समश्रेणी से एकाधिक अवगाहन करता है, तब समश्रेणी में स्थित चार परमाणु पहले कहे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org