________________ दसवाँ चरमपन ] [25 और अचरम शब्दों द्वारा व्यवहार के योग्य न होने से 'प्रवक्तव्य' होता है / इस प्रकार त्रिप्रदेशी स्कन्ध में पहला, तीसरा, नौवाँ और ग्यारहवाँ, ये चार भंग होते हैं, शेष 22 भंग नहीं पाए जाते / ___ चतुष्प्रदेशोस्कन्ध में सात भंग-इसमें पहला और तीसरा, नौवाँ और ग्यारहवाँ भंग तो द्विप्रदेशी एवं त्रिप्रदेशी स्कन्ध में उक्त युक्ति के अनुसार समझ लेना चाहिए। इसके पश्चात् दसवाँ भंग भी चतुष्प्रदेशी स्कन्ध में घटित होता है। वह इस प्रकार है-दो चरम और दो अचरम / क्योंकि जब चतुःप्रदेशी स्कन्ध समश्रेणी में स्थित चार आकाशप्रदेशों में 0 0 0 0 इस प्रकार अवगाहन करता है, तब आदि और अन्त में अवगाढ़ दो परमाणु (प्रदेश), दोनों चरम होते हैं और बीच के दो परमाणु अचरम (द्वय) कहलाते हैं। इस कारण इसे कथंचित् 'दो चरम और दो अचरम' कहा जा सकता है। इसी प्रकार बारहवाँ भंग-कथंचित् चरम और दो प्रवक्तव्यरूप--भी उसमें घटित होता है। वह इस प्रकार-जब चतुष्प्रदेशात्मक स्कन्ध चार आकाशप्रदेशों में अवगाहना करता है, तब इस प्रकार की स्थापना के अनुसार उसके दो परमाणु समश्रेणी में स्थित दो प्राकाशप्रदेशों में होते हैं. और दो परमाणु विश्रेणी में स्थित दो आकाशप्रदेशों में होते हैं। ऐसी स्थिति में समश्रेणी में स्थित दो परमाणु द्विप्रदेशावगाढ़ द्विप्रदेशी स्कन्ध के समान 'चरम' होते हैं और विश्रेणी में स्थित दो परमाणु अकेले परमाणु के समान चरम या अचरम शब्दों से कहने योग्य न होने से प्रवक्तव्य होते हैं / अतएव समन चतुष्प्रदेशीस्कन्ध कथंचित् एक चरम और दो (अनेक) अवक्तव्यरूप कहा जा सकता है। इसके पश्चात् तेईसवाँ भंग इसमें घटित होता है / वह इस प्रकार---जब चतुष्प्रदेशी स्कन्ध चार आकाशप्रदेशों में इस प्रकार की स्थापना के अनुसार अवगाहना करता है, तब तीन परमाणु तो समश्रेणी में स्थित तीन आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होते हैं और एक परमाणु विश्रेणी में स्थित आकाशप्रदेश में रहता है। ऐसी स्थिति में समश्रेणी में स्थित तीन परमाणुगों में से प्रादि और अन्त के परमाणु पर्यन्तवर्ती होने के कारण चरम होते हैं और बीच का परमाण म होता है तथा विश्रेणी में स्थित एक परमाणु चरम या अचरम कहलाने योग्य न होने से प्रवक्तव्य होता है। इस प्रकार समन चतुष्प्रदेशीस्कन्ध दो (अनेक) चरमरूप, एक अचरम और एक प्रवक्तव्यरूप कहलाता है। इस प्रकार पहला, तीसरा, नौवाँ, दसवाँ, ग्यारहवाँ, बारहवाँ और तेईसवाँ, इन 7 भंगों के सिवाय शेष 19 भंग इसमें नहीं पाये जाते। पंचप्रदेशी स्कन्ध में ग्यारह भंग-पांच प्रदेशों वाले स्कन्ध में चरमादि 11 भंग पाये जाते हैं / पहला, तीसरा, नौवाँ, दसवाँ, ग्यारहवाँ, बारहवाँ और तेईसवाँ, ये सात भंग तो पूर्वोक्त युक्ति के अनुसार समझ लेने चाहिए। इसमें सातवाँ भंग कथंचित् एक चरम और एक अचरम इस प्रकार घटित होता है, जब पंचप्रदेशात्मक स्कन्ध पांच अाकाशप्रदेशों में इस प्रकार की स्थापना : के अनुसार अवगाहन करके रहता है, तब उभय पर्यन्तवर्ती चार परमाणु एकसम्बन्धिपरिणाम से परिणत होने से एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस ओर एक समान स्पर्श वाले होने के कारण उनके लिए एकत्व का व्यपदेश (कथन) होने से वे 'चरम' कहे जा सकते हैं, किन्तु बीच का परमाणु मध्यवर्ती होने के कारण 'अचरम' होता है। इस प्रकार पंचप्रदेशो स्कन्ध कथंचित् उभ यरूप 'चरम और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org