________________ 14 [प्रजापनासून [782 उ.] गौतम ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध 1. कथंचित् चरम 0 है, 2. अचरम नहीं है, 3. कथंचित् अवक्तव्य 0 0. है / शेष तेईस भंगों का भी निषेध करना चाहिए / 783. तिपएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा। गोयमा ! तिपएसिए खंधे सिय चरिमे 101 नो अचरिमे 2 सिय अवत्तम्वए| | 3 नो चरिमाइं 4 को अचरिमाई 5 नो प्रवत्तव्वयाई 6, नो चरिमे य अचरिमे य 7 नो चरिमे य प्रचरिमाई 8 सिय चरिमाइं च प्रचरिमे य ह नो चरिमाइं च प्रचरिमाइं च 10, सिय चरिमे य प्रवत्तव्वए य / 11, सेसा (15) भंगा पडिसेहेयव्वा / [783 प्र.] भगवन् ! त्रिप्रदेशिक स्कन्ध के विषय में (मेरी उपर्युक्त प्रकार की) पृच्छा है, (उसका समाधान क्या है ?) [783 उ.] गौतम ! त्रिप्रदेशिक स्कन्ध 1. कथञ्चित् चरम 000/ है, 2. अचरम नहीं है, 3. कयंचित् अवक्तव्य / 0deg है, 4. वह न तो अनेक चरमरूप है, 5. न अनेक अचरमरूप है, 6. न अनेक प्रवक्तव्यरूप है, 7. न एक चरम और एक अचरम है, 8. न एक चरम और अनेक अचरमरूप है, 9. कथंचित् अनेक चरमरूप और एक अचरम 0 00/ है , 10. (वह) अनेक चरमरूप और अनेक अचरमरूप नहीं है, (किन्तु) 11. कथंचित् एक चरम और एक प्रवक्तव्य 0 0 है / शेष पन्द्रह भंगों का निषेध करना चाहिए। 784. चउपएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा। गोयमा ! चउपएसिए णं खंधे सिय चरिमे |0000 1 नो प्रचरिमे 2 सिय प्रवत्तव्वए। / / 3 नो चरिमाइं 4 तो अचरिमाइं 5 नो प्रवत्तब्वयाई 6, नो चरिमे य अचरिमे य 7 नो चरिमे य अचरिमाई च 8 सिय चरिमाइं च अचरिमे य || 0 सिय चरिमाइं च प्रचरिमाइं च ||10| 10, सिय चरिमे य अवत्तव्यए य 1000/--, 11 सिय चरिमे य अवत्तम्बयाई च|| 12 नो चरिमाइंच | | प्रवत्तध्वए 13 नो चरिमाइं च अवत्तन्वयाइं च 14, नो अचरिमे य प्रवत्तव्वए य 15 नो प्रचरिमे य अवत्तब्धयाई च 16 नो प्रचरिमाइं च अवत्तम्बए य 17 नो अचरिमाइं च प्रवत्तब्बयाई च 18, नो चरिमे य प्रचरिमे य अवत्तव्वए य 16 नो चरिमे य प्रचरिमे य अवत्तन्वयाइं च 20 नो चरिमे य अचरिमाइं च अनननाए 21 नो चरिमे य अचरिमाइं च प्रवत्तव्वयाइं च 22 सिय चरिमाइं च प्रचरिमे य अवत्तव्वए यम 23, सेसा (3) भंगा पडिसेहेयव्वा / [784 प्र.] भगवन् ! चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध के विषय में (मेरी पूर्ववत्) पृच्छा है, (उसका क्या समाधान है ?) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org