Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ दसवां चरमपद सिय चरिमाइं च प्रचरिमाइंच सिय चरिमेय अवत्तव्यए 12 सिय चरिमाइंच अवत्तव्वए य 13 सिय सिय चरिमेय प्रवत्तब्वयाइंच चरिमाइंच अवत्तवियाई * 14, नो प्रचरिमे य अवत्तध्वए य 15 नो अचरिमे य अवत्तवव्याई च 16 नो प्रचरिमाइं च प्रवत्तन्वए य 17 नो प्रचरिमाइं च अवत्तन्वयाइं च 18, सिय चरिमे अचरिमे य प्रवत्तवए। 16 सिय चरिमे य प्रचरिमेय अवत्तव्ययाइंच 101010] 20 सिय चरिमे य अचरिमाइंच प्रवत्तवए य 21 नो चरिमे य अचरि|| | माइं च प्रवत्तव्ययाइं च 22 सिय चरिमाइं च अचरिमे य प्रवत्तव्यए यमग-२३ सिय चरिमाई च प्रचरिमेय प्रवत्तव्बयाई सिय चरिमाइंच अचरिमाइं च प्रवत्तब्धए य I0 ITI- 25 सिय चरिमाइं च प्रचरिमाइं च प्रवत्तब्धयाई च / / 26 / [787 प्र.] भगवन् ! सप्तप्रदेशिक स्कन्ध के विषय में (मेरी पूर्ववत) पृच्छा है, (उसका समाधान क्या है ?) [787 उ.] गौतम ! सप्तप्रदेशिक स्कन्ध 1. कथंचित् चरम : 0 है, 2. अचरम नहीं है, 3. कथंचित् अवक्तव्य |: ::है, 4. (किन्तु वह) अनेक चरमरूप नहीं है, 5. न अनेक अचरमरूप है और 6. न ही अनेक प्रवक्तव्यरूप है, (किन्तु) 7. कथंचित् चरम और अचरम 1. .... है, 8. कथंचित् एक चरम और अनेक अचरमरूप 60000/ है, 6. कथंचित् अनेक चरमरूप और एक अचरम 18:818 0 है, 10. कथंचित् अनेक चरमरूप और अनेक अचरमरूप .::1:10 है, 11. कथंचित् एक चरम और एक प्रवक्तव्य है, 12. कथंचित् एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org