Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ दसवाँ घरमपद ] [21 11 सिय चरिमे य प्रवत्तध्वयाई च|88181१२ सिय चरिमाई च प्रवत्तव्वए य 100113 सिय चरिमाइं च प्रवत्तव्वयाईच 14 नो अचरिमे य प्रवत्तब्बए य 15 नो अचरिमे य प्रवत्तव्वयाई च 16 नो प्रचरिमाइं च अवत्तवए य 17 नो प्रचरिमाइं च प्रवत्तव याइं च 18, सिय चरिमे य अचरिमे य प्रवत्तव्यए य| य अबलम्बए पनि | 16 सिय चरिमे य अचरिमे सिय चरिम य अचरिने य प्रवत्तव्बयाई 20 सिय चरिमे य प्रचरिमाइंच अवत्तब्वए य सिय भरिने व अवस्मिाई व भावलम्याई छ ! - 22 सिय जरिमाई च अवस्लेि या सिय चरिमे य प्रचरिमाइं च प्रवत्तक 22 सिय चरिमाइं च अचरिमे य प्रवत्तवए यानावान-२३ सिय चरिमाइं च अचरिमे य प्रवत्तव्वयाइं च 1818 24 सिय चरिमाइं च प्रचरिमाइं च प्रवत्तव्वए याबावामान 25 सिय चरिमाई च प्रचरिमाइं च प्रवत्तव्वयाई च वाला [788 प्र. भगवन् ! अष्टप्रदेशिक स्कन्ध के विषय में (मेरी पूर्ववत्) पृच्छा है, इसका क्या समाधान है ? [788 उ.] गौतम ! अष्टप्रदेशिक स्कन्ध 1. कथंचित् चरम ::: : / / है, 2. अचरम नहीं है, 3. कथंचित् अवक्तव्य है, :: (किन्तु) 4. न तो अनेक चरमरूप है, 5. न अनेक अचरम रूप है (और) 6. न ही अनेक अवक्तव्यरूप है, 7. कथंचित् एक चरम और एक अचरम है, 8. कथंचित् एक चरम और अनेक अचरमरूप [81 : है, 6. कथंचित् अनेक चरमरूप और एक अचरम !::: | है, 10. कथंचित् अनेक चरमरूप और अनेक अचरमरूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org